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________________ का गहन अवलोकन किया था'. आचार्य वीरसेन एक बहुश्रुत विद्वान् थे, यह मानने में किसी को भी कोई आपत्ति नहीं है; किन्तु वही एकमात्र बहुश्रुत विद्वान् हुए हों, ऐसा भी नहीं है। दिगम्बर और श्वेताम्बर परम्पराओं में ऐसे अनेक बहुश्रुत विद्वान् हुए हैं। पुनः, उन्होंने श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों परम्पराओं के साहित्य का अध्ययन किया हो, यह मानने में भी किसी को बाधा नहीं हो सकती है; किन्तु यह कहना कि उन्होंने समस्त दिगम्बर-श्वेताम्बर साहित्य का गहन अवलोकन किया था, अतिशयोक्तिपूर्ण कथन ही है। 'धवला' में ऐसे अनेक स्थल हैं, जो श्वेताम्बर-परम्परा और उसके ग्रन्थों से उनके परिचित न होने का संकेत करते हैं, साथ ही उनके काल तक श्वेताम्बर-दिगम्बर साहित्य इतना विपुल था कि उन सबका गहन अध्ययन कर लेना एक व्यक्ति के लिए किसी भी स्थिति में सम्भव नहीं था। अधिक तो क्या? जिस यापनीय-परम्परा के ग्रन्थ पर उन्होंने टीका लिखी, उसकी अनेक मान्यताओं के सम्बन्ध में उन्होंने कोई संकेत तक नहीं दिया। उस युग के श्वेताम्बर आगमों, यापनीय ग्रन्थों और स्वयं अपनी परम्परा के आचार्य कुन्दकुन्द के ग्रन्थों की विषयवस्तु के सम्बन्ध में धवलाकार का ज्ञान कितना सीमित था, यह तो उनकी टीका से ही स्पष्ट है। 12. 'जैन दर्शन का हर विषय क्रमबद्ध (systematic) रूप में शौरसेनी साहित्य में प्राप्त होता है'. यह सत्य है कि शौरसेनी साहित्य में जैन दर्शन से सम्बन्धित जिन विषयों की विवेचना की गई है, वह अर्धमागधी आगमों की अपेक्षा अधिक सुव्यवस्थित है; किन्तु इसका कारण यह है कि शौरसेनी साहित्य जिस काल में निर्मित हुआ, उस काल तक जैनदर्शन के विभिन्न सिद्धान्त व्यवस्थित रूप से विकसित हो चुके थे। किसी भी सिद्धान्त का विकास एक कालक्रम में होता है। क्रमबद्धता और व्यवस्था तो उस अन्तिम स्थिति की परिचायक है, जब वह सिद्धान्त अपने विकास की चरम अवस्था में पहुँच जाता है। शौरसेनी साहित्य में जैन दर्शन के विभिन्न सिद्धान्त व्यवस्थित और क्रमबद्ध रूप में उपलब्ध होते हैं, यह तो इस तथ्य का सूचक है कि शौरसेनी साहित्य अर्धमागधी आगम साहित्य से परवर्ती है और उसी के आधार पर निर्मित हुआ है। परवर्तीकालीन रचनाओं की यह विशेषता होती है कि वे अपने पूर्वकालीन रचनाओं की कमियों का निराकरण कर
SR No.006188
Book TitlePrakrit Bhasha Ka Prachin Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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