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________________ की स्थिति तो कुन्दकुन्द के इन ग्रन्थों से भी बदतर है, उसकी प्रारम्भ की सौ गाथाओं के 40 प्रतिशत क्रियारूप महाराष्ट्री प्राकृत के हैं। इससे फलित होता है कि तथाकथित शौरसेनी आगमों के भाषागत स्वरूप में तो अर्धमागधी आगमों की अपेक्षा भी न केवल वैविध्य है, अपितु उस पर महाराष्ट्री प्राकृत का भी व्यापक प्रभाव है, जिसे सुदीपजी शौरसेनी से परवर्ती मान रहे हैं। यदि ये ग्रन्थ प्राचीन होते, तो इन पर अर्धमागधी और महाराष्ट्री का प्रभाव कहाँ से आता ? प्रो. ए. एम. उपाध्ये ने प्रवचनसार की भूमिका में स्पष्टतः यह स्वीकार किया है कि उसकी भाषा पर अर्धमागधी का प्रभाव है। प्रो. खड़बड़ी ने तो 'षट्खण्डागम' की भाषा को भी शुद्ध शौरसेनी नहीं माना है। 'न' कार और 'ण' कार में कौन प्राचीन ? अब हम 'ण्’कार और 'न'कार के प्रश्न पर आते हैं। भाई सुदीपजी ! आपका यह कथन सत्य है कि अर्धमागधी में 'न' कार और 'ण'कार दोनों पाये जाते हैं; किन्तु दिगम्बर शौरसेनी आगमतुल्य ग्रन्थों में सर्वत्र 'ण'कार का पाया जाना यही सिद्ध करता है कि जिस शौरसेनी को आप अरिष्टनेमि के काल से प्रचलित प्राचीनतम प्राकृत कहना चाहते हैं, उस 'ण'कार प्रधान शौरसेनी का जन्म तो ईसा की तीसरी शताब्दी तक हुआ भी नहीं था । 'ण' की अपेक्षा 'न' का प्रयोग प्राचीन है। ई.पू. तृतीय शती के अशोक के अभिलेख एवं ई.पू. द्वितीय शती के खारवेल के शिलालेख से लेकर मथुरा के शिलालेख (ई.पू. दूसरी शती से ईसा की तीसरी शती तक) इन लगभग 80 जैन शिलालेखों में दन्त्य 'न' कार के स्थान पर एक भी 'ण'कार का प्रयोग नहीं है। इनमें शौरसेनी प्राकृत के रूपों, यथा- 'णमो', 'अरिहंताणं' और 'णमो वडमाणं' का सर्वथा अभाव है। यहाँ हम केवल उन्हीं प्राचीन शिलालेखों को उद्धृत कर रहे हैं, जिनमें इन शब्दों का प्रयोग हुआ है - ज्ञातव्य है कि ये सभी अभिलेखीय साक्ष्य जैन शिलालेख संग्रह, भाग - 2 से प्रस्तुत हैं, जो दिगम्बर जैन समाज द्वारा ही प्रकाशित हैं। 1. हाथीगुम्फा उड़ीसा का शिलालेख - प्राकृत, जैन सम्राट खारवेल, मौर्यकाल 165वाँ वर्ष, पृ.4, लेख क्रमांक 2, 'नमो अरहंतानं, नमो सवसिधानं'. लगभग 2. वैकुण्ठ स्वर्गपुरी गुफा, उदयगिरि, उड़ीसा - प्राकृत, मौर्यकाल 165वाँ वर्ष, ई.पू. दूसरी शती, पृ. 11, ले.क्र.3, 'अरहन्तपसादन' 53
SR No.006188
Book TitlePrakrit Bhasha Ka Prachin Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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