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प्राचीनतम है।
अर्धमागधी आगमों की विषय वस्तु सरल है
अर्धमागधी आगम साहित्य की विषयवस्तु मुख्यतः उपदेशपरक, आचारपरक एवं कथापरक है। भगवती के कुछ अंश, प्रज्ञापना, अनुयोगद्वार, जो कि अपेक्षाकृत परवर्ती हैं, उनको छोड़कर उनमें प्रायः गहन दार्शनिक एवं सैद्धान्तिक चर्चाओं का अभाव है। विषय प्रतिपादन सरल, सहज और सामान्य व्यक्ति के लिए भी बोधगम्य है। वह मुख्यतः विवरणात्मक एवं उपदेशात्मक है। इसके विपरीत, शौरसेनी आगमों में आराधना और मूलाचार को छोड़कर लगभग सभी ग्रन्थ दार्शनिक एवं सैद्धान्तिक चर्चा से युक्त हैं। वे परिपक्व दार्शनिक विचारों के परिचायक हैं। गुणस्थान और कर्मसिद्धान्त की वे गहराइयाँ, जो शौरसेनी आगमों में उपलब्ध हैं, अर्धमागधी आगमों में उनका प्रायः अभाव ही है। कुन्दकुन्द के समयसार के समान सैद्धान्तिक दृष्टि से आध्यात्मवाद के प्रतिस्थापन का भी उनमें कोई प्रयास परिलक्षित नहीं होता, यद्यपि ये सब उनकी कमी भी कही जा सकती है, किन्तु चिन्तन के विकासक्रम की दृष्टि से विचार करने पर स्पष्ट रूप से यह फलित होता है कि अर्धमागधी आगम साहित्य प्राथमिक स्तर के होने से प्राचीन भी हैं और साथ ही विकसित शौरसेनी आगमों के आधारभूत भी । समवायांग में जीवस्थानों के नाम से 14 गुणस्थानों का मात्र निर्देश है, जबकि षट्खण्डागम जैसा प्राचीन शौरसेनी आगम भी उनकी गम्भीरता से चर्चा करता है। मूलाचार, भगवती आराधना, कुन्दकुन्द के ग्रन्थ और गोम्मटसार आदि सभी में गुणस्थानों की विस्तृत चर्चा है, चूंकि तत्त्वार्थ के बाद की कृतियाँ मानी जा सकती हैं। इसी प्रकार, कषायपाहुड, षट्खण्डागम, गोम्मटसार आदि शौरसेनी आगम ग्रन्थों में कर्मसिद्धान्त की जो गहन चर्चा है, वह भी अर्धमागधी आगम साहित्य में अनुपलब्ध है। अतः, अर्धमागधी आगमों की सरल, बोधगम्य एवं प्राथमिक स्तर की विवरणात्मक शैली उनकी विशेषता एवं प्राचीनता की सूचक है।
तथ्यों का सहज संकलन
अर्धमागधी आगमों में तथ्यों का सहज संकलन किया गया है, अतः अनेक स्थानों पर सैद्धान्तिक दृष्टि से उनमें विसंगतियाँ पायी जाती हैं। वस्तुतः, ये ग्रन्थ अकृत्रिम भाव से रचे गये हैं और उन्हें युक्तिसंगत बनाने का कोई प्रयास नहीं किया गया है। एक ओर उनमें अहिंसा की सूक्ष्मता के साथ पालन के निर्देश हैं, तो दूसरी ओर ऐसे अनेक निर्देश भी हैं,