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समझाने के लिए व्याकरण ग्रन्थ बाद में बने। कोई भी प्राकृत व्याकरण 5वीं - 6ठी शती से पूर्व का नहीं है ।
प्राकृतों के व्याकरण प्राकृत ग्रन्थों से परवर्ती काल के ही हैं। दूसरी बात यह है कि प्राकृत के शब्द-रूपों को समझाने के लिए उनमें जो नियम बनाये गए, वे संस्कृत के शब्द-रूपों को आदर्श या मॉडल मानकर ही बनाये गए, अतः प्राकृत व्याकरणों में जो ‘प्रकृतिः संस्कृतम् ’-इस सूत्र का अर्थ केवल इतना ही है कि इस प्राकृत के शब्द-रूपों को समझाने का आधार संस्कृत है। जो लोग इस सूत्र के आधार पर यह अर्थ लगाते हैं कि संस्कृत से विकृत होकर या उससे प्राकृत का जन्म हुआ, वे भ्रान्ति में हैं। संस्कृत और प्राकृत शब्द ही इस बात के प्रमाण हैं कि कौन पूर्ववर्ती है। प्राकृतें पुराकालीन क्षेत्रीय बोलियाँ हैं और उनका संस्कार करके ही संस्कृत भाषा का विकास, मानव सभ्यता के विकास के साथ हुआ है। वैज्ञानिक दृष्टि से मानव सभ्यता कालक्रम में विकसित हुई है, अतः उसकी भाषा भी विकसित हुई है। ऐसा नहीं है कि आदिम मानव शुद्ध संस्कृत बोलता था और फिर उसके शब्द - रूपों या उच्चारण में विकृति आकर प्राकृतें उत्पन्न हो गईं। अतः, प्राकृत व्याकरणों में जहां भी सामान्य प्राकृत के लिए 'प्रकृति संस्कृतम्' शब्द आया हैवह यही सूचित करता है कि संस्कृत को अथवा अन्य किसी प्राकृत को आदर्श या मॉडल मानकर उस व्याकरण की संरचना की गई है। इसी प्रकार, विभिन्न प्राकृतों के पारस्परिक संबंध समझाने के लिए जब 'शेषंशौरसेनीवत्' आदि सूत्र आते हैं तो उनका तात्पर्य भी मात्र यही है कि उसके विशिष्ट नियम समझाये जा चुके हैं, शेष नियम शौरसेनी आदि किसी भी आदर्श प्राकृत के समान ही हैं। उदाहरण के रूप में, हेमचन्द्र जब मागधी या आर्षप्राकृत के सम्बन्ध में यह कहते हैं कि - 'शेष प्राकृतवत्', तो उसका तात्पर्य यह नहीं कि मागधी प्राकृत महाराष्ट्री प्राकृत या सामान्य प्राकृत से विकसित हुई है। क्षेत्रीय बोलियों में चाहे कालक्रम में परिवर्तन आये भी हों और अपनी समीपवर्ती बोलियों से वे प्रभावित हुई हों किन्तु कोई भी किसी से उत्पन्न या विकसित नहीं हुई है। सभी प्राकृतें अपनी क्षेत्रीय बोलियों से विकसित हुई हैं। यद्यपि क्षेत्रीय बोलियों के रूप में प्राकृतों का कालक्रम निश्चित करना कठिन है, किन्तु अभिलेखों एवं ग्रन्थों के आधार पर इन विभिन्न प्राकृतों के कालक्रम के सम्बन्ध में विचार किया जा सकता है
1. अशोक के अभिलेखों की प्राचीन मागधी उपलब्ध प्राकृतों में सबसे प्राचीन है। उससे