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________________ अमिट एवं मौलिक प्रभाव है। - प्राकृत विद्या, अप्रैल-जून, 1998, पृ.14. प्रथमतः, उनका यह कहना सर्वथा असत्य और अप्रामाणिक है कि इस अभिलेख में पद के प्रारम्भ में 'ण' वर्ण का प्रयोग हुआ है तथा पद के अन्त में 'न्' वर्ण आया है। विद्वत्जनों के तात्कालिक सन्दर्भ के लिए हम नीचे हाथीगुफा खारवेल का अभिलेख उद्धृत कर रहे हैं PLanguage : Prakrit resembling Pali Script : Brahmi of about the end of the 1st. century B.C. Text 1. नमो अरहंतानं (1) नमो सव-सिधानं (II) ऐरेण महाराजेन महामेघवाहनेन चेति राज-व (11) स-वधनेन पसथ-सुभ-लखनेन चतुरंतलुठ (ण)-गुण-उपितेन कलिंगाधिपतिना सिरि-खारवेलेन 2. (प) दरस-वसानि सीरि- (कडार)- सरीर-वता कीडिता कुमार-कीडिका (11) ततो लेख-रूप गणना-ववहार-विधि-विसारदेव सव-विजावदातेन नव-वसानि योवरज (प) सासितं (II) संपुंण- चतुवीसिति-वसो तदानि वधमानसेसयो वेनाभिविजयो ततिये कलिंग राज वसे पुरिस-युगे महाराजाभिसेचनं पापुनाति(11) अभिसितमतो च पघमे वसे वात-विहत गोपुर-पाकार-निवेसनं पटिसंखारयति कलिंगनगरिखिबी (र) (1) सितल-तडाग-पाडियो च बंधापयति सवूयान-प (टि) संथपनं च 4. कारयति पनति (सि) साहि सत-सहसेहि पकतियो च रंजयति (11) दुतिये च वसे अचितयिता सातकंनि पछिम-दिसं हय-गज-नर-रघ-बहुलं दंडं पठापयति (1) कन्हवेंणा-गताय च सेनाय वितासिति असिकनरं (।।) ततिये पुन वसे 5. गंधव-वेद-बुधो दपउसव-समाज-कारापनाहि च कीडापयति नगरिं (II) तथा चवुथे वसे विजाधराधिवासं अहतपुवं कलिंग पुव राज (निवेसित)... वितध म(कुट)ट.... च निखित-छत 6. भिंगारे (हि)त रतन सपतेये सव रठिक भोजके पादे वंदापयति (11) पंचमे च दानी वसे नंद-राज-ति-वस-सत-ओ(घा) टितं तनसुलिय-वाटा पणाडिं नगरं पवेस
SR No.006188
Book TitlePrakrit Bhasha Ka Prachin Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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