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________________ निर्देश किया है, मात्र यही नहीं इन वृत्तियों (नाट्यशैलियों) की चर्चा करते हुए उन्होंने इनके विस्तार क्षेत्र की भी चर्चा की है और ओड्मागधी वृत्ति का क्षेत्र सम्पूर्ण पूर्वी भारत बताया है, जो वर्तमान में पश्चिम में प्रयाग से लेकर पूर्व में ब्रह्मदेश तक और उत्तर में नेपाल से लेकर दक्षिण में बंगाल और दक्षिण उड़ीसा के समुद्रतट तक बताया है, लेकिन यहाँ जिस ओड्मागधी वृत्ति की चर्चा की गई है, वह एक नाट्य विद्या या नाट्यशैली है। यह ठीक है कि वृत्ति या शैली का सम्बन्ध उस क्षेत्र की वेशभूषा, बोलचाल, आचार-पद्धति एवं वाणिज्य-व्यवसाय आदि से होता है, वह एक संस्कृति को प्रस्तुत करती है, जिसमें उपर्युक्त तथ्य भी सन्निहित होते हैं, फिर भी ओड्मागधी एक नाट्यशैली है, न कि एक भाषा। भरतमुनि ने कहीं भी उसका उल्लेख एक भाषा के रूप में नहीं किया है। यह डॉ. सुदीप की भ्रामक कल्पना है कि एक नाट्यशैली को वे एक भाषा सिद्ध कर रहे हैं। आज जैसे ओडिसी एक नृत्यशैली है। आज यदि कोई 'ओडिसी' शैली को भाषा कहे, तो वह उसके अज्ञान का ही सूचक होगा। उसी प्रकार ओड्मागधी, जो एक नाट्यशैली रही है, उसको एक भाषा कहना एक दुस्साहस ही होगा, जो डॉ.सुदीपजी ही कर सकते हैं। यदि ओड्मागधी नामक कोई भाषा होती, तो दो हजार वर्ष की इस अवधि में संस्कृत एवं प्राकृत का कोई न कोई विद्वान् तो उसका भाषा के रूप में उल्लेख करता अथवा संस्कृतप्राकृत भाषा के किसी व्याकरण में उसके लक्षणों की कोई चर्चा अवश्य हुई होगी। भरतमुनि ने अपने नाट्यशास्त्र में जहाँ भी ओड्मागधी का उल्लेख किया है, उसे एक नृत्यशैली के रूप में ही प्रस्तुत किया है, कहीं भी उसका भाषा के रूप में उल्लेख नहीं है। यह बात भिन्न है कि नृत्यशैली में भी वेशभूषा, भाषा आदि सांस्कृतिक तत्त्व अन्तर्निहित होते हैं, किन्तु इसका अर्थ यह नहीं कि ओड्मागधी नामक कोई भाषा थी। वस्तुतः ओड्मागधी एक वृत्ति, प्रवृत्ति या शैली ही थी। भरतमुनि और उनके टीकाकारों और व्याख्याकारों ने सदैव ही उसका नाट्यशैली के रूप में उल्लेख किया है, भारतीय वाङ्मय में ऐसा एक भी सन्दर्भ नहीं है, जो ओड्मागधी को एक भाषा के रूप में उल्लेखित करता हो। ___वस्तुतः, ओड्मागधी है क्या? वह 'ओड्' और 'मागधी' इन दो शब्दों से बना एक संयुक्त शब्दरूप है, इसमें ओड् वर्तमान उड़ीसा प्रदेश की और मागधी मगध प्रदेश की नाट्यशैली का सूचक है। उड़ीसा और मगध प्रदेश की मिश्रित नाट्यशैली को ही
SR No.006188
Book TitlePrakrit Bhasha Ka Prachin Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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