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________________ प्राकृत के रूप में अर्धमागधी का उद्भव एवं विकास हुआ। इसके पश्चात् शौरसेनी और महाराष्ट्री प्राकृतें भी साहित्यिक भाषा के रूप में विकसित हुईं। जहाँ तक मागधी या प्रारम्भिक अर्धमागधी का प्रश्न है, उसके साहित्यिक एवं पुरातात्त्विक (अभिलेखीय) दोनों प्रमाण उपलब्ध हैं, जो ई.पू. तीसरी-चौथी शताब्दी तक जाते हैं, किन्तु जहाँ तक शौरसेनी और महाराष्ट्री प्राकृत का प्रश्न है, उसके मात्र साहित्यिक प्रमाण ही उपलब्ध हैं, जो अधिकतम ईसा की द्वितीय शती से पाँचवी शती के मध्य के हैं, उसके पूर्ववर्ती नहीं हैं। यद्यपि बोली के रूप में प्राकृतें अनेक रही हैं, उनमें संस्कृत के समान एकरूपता नहीं है, संस्कृत के दो ही रूप मिलते हैं, आर्ष और परवर्ती साहित्यिक संस्कृत, जबकि प्राकृतें अपने बोलीगत विभिन्न रूपों के कारण अनेक प्रकार की हैं। विविध प्राकृतों का एक अच्छा संग्रह हमें मृच्छकटिक नामक नाटक में मिलता है, किन्तु प्रस्तुत आलेख में मैंने उन सबका उल्लेख न करके जैन साहित्य के संदर्भ को ध्यान में रखते हुए अर्द्धमागधी, जैन शौरसेनी और महाराष्ट्री प्राकृत का ही उल्लेख किया है और साथ ही, कालक्रम में उनके विकासक्रम का भी उल्लेख किया है। यद्यपि कुछ अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर उत्तर-पश्चिमी पाकिस्तान और अफगानिस्तान की पैशाची प्राकृत भी प्राचीन प्राकृत रही है, किन्तु कुछ अभिलेखों और नाटकों में प्रयुक्त उसके कुछ शब्दरूपों के अतिरिक्त उस सम्बन्ध में अधिक साक्ष्य उपलब्ध नहीं हैं। जहां तक प्राकृत धम्मपद का प्रश्न है, वह उससे प्रभावित अवश्य लगता है, किन्तु वह विशुद्ध पैशाची प्राकृत का ग्रन्थ है, यह नहीं कहा जा सकता है। सामान्य रूप से प्राकृत भाषा के क्षेत्र की चर्चा करनी हो, तो समस्त योरोपीय क्षेत्र एक समय प्राकृतभाषी क्षेत्र रहा है। आज भी अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन, इतालवी आदि वर्त्तमान यूरोपीय भाषाओं तथा प्राचीन ग्रीक, लेटिन आदि में अपने उच्चारणगत शैलीभेद को छोड़कर अनेक शब्द रूप समान पाये जाते हैं। मैंने कुछ अर्धमागधी प्राकृत शब्दरूपों को वर्त्तमान अंग्रेजी में भी खोजा है, जैसे- बोंदी = बॉडी, आउट्टे = आउट, नो नो, दार=डोअर, भातर = ब्रदर आदि जो दोनों में समान अर्थ में प्रयुक्त होते हैं। = प्रो. भयाणी और अन्य अनेक भाषा वैज्ञानिकों ने इण्डो-आर्यन भाषाओं को तीन भागों में बांटा है। Old Indo-Aryan Languages, Middle Indo-Aryan Languages और Lateral Indo-Aryan Languages उनके अनुसार प्राचीन भायूरोपीय भाषाओं में मुख्यतः ऋग्वेद एवं अवेस्ता की भाषाएं आती हैं। मध्यकालीन
SR No.006188
Book TitlePrakrit Bhasha Ka Prachin Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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