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होता है कि वीर निर्वाण के 980 या 993 वर्ष पश्चात् देवर्दिद्धक्षपणश्रमण ने प्रस्तुत ग्रन्थ की यह अन्तिम वाचना प्रस्तुत की। इसी प्रकार स्थानांग', भगवती सूत्र और आवश्यकनियुक्ति में निह्नवों के उल्लेखों के साथ वे महावीर के जीवनकाल और निर्वाण से कितने समय पश्चात् हुए हैं-यह निर्देश प्राप्त होता है। ये ही कुछ ऐसे सूत्र हैं, जिनकी बाह्य सुनिश्चित समय वाले साक्ष्यों से तुलना करके ही हम महावीर की निर्वाण तिथि पर विचार कर सकते हैं।
महावीर की निर्वाण तिथि के प्रश्न को लेकर प्रारम्भ से मत-वैभिन्य रहे हैं। दिगम्बर परम्परा के द्वारा मान्य तिलोयपण्णत्ति में यद्यपि यह स्पष्ट उल्लेख है कि वीरनिर्वाण के 605 वर्ष एवं 5 मास पश्चात् शक नृप हुआ, किन्तु उसमें इस संबंधी निम्न चार मतान्तरों का भी उल्लेख मिलता है।
1. वीर जिनेन्द्र के मुक्ति प्राप्त होने के 461 वर्ष पश्चात् शक नृप हुआ। 2. वीर भगवान् के मुक्ति प्राप्त होने के 9785 वर्ष पश्चात् शक नृप हुआ। 3. वीर भगवान के मुक्ति प्राप्त होने के 14793 वर्ष पश्चात् शक नृप हुआ। 4. वीर जिन के मुक्ति प्राप्त करने के 605 वर्ष एवं 5 माह पश्चात् शक नृप हुआ।
इसके अतिरिक्त, षट्खण्डागम की 'धवला' टीका में भी महावीर के निर्वाण के कितने वर्षों के पश्चात् शक (शालिवाहन शक) नृप हुआ, इस सम्बन्ध में तीन मतों का उल्लेख हुआ है।"
1. वीर निर्वाण के 605 वर्ष और पाँच माह पश्चात्। 2. वीर निर्वाण के 14793 वर्ष पश्चात्। 3. वीर निर्वाण के 7995 वर्ष और पाँच माह पश्चात्।
श्वेताम्बर परम्परा में आगमों की देवर्द्धि की अन्तिमवाचना भगवान महावीर के निर्वाण के कितने समय पश्चात् हुई, इस सम्बन्ध में स्पष्टतया दो मतों का उल्लेख मिलता है-प्रथम मत उसे वीर निर्वाण के 980 वर्ष पश्चात् मानता है, जबकि दूसरा मत उसे 993 वर्ष पश्चात् मानता है।
श्वेताम्बर परम्परा में चन्द्रगुप्त मौर्य के राज्यारोहणकाल को लेकर भी दो मान्यताएँ पायी जाती हैं। प्रथम परम्परागत मान्यता के अनुसार वे वीर निर्वाण सम्वत् 215 में