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भगवान महावीर की निर्वाण तिथि
: एक पुनर्विचार
सामान्यतया, जैन लेखकों ने अपनी काल गणना को शक संवत् से समीकृत करके यह माना है कि महावीर के निर्वाण के 605 वर्ष और पाँच माह पश्चात् शक राजा हुआ। इसी मान्यता के आधार पर वर्तमान में भी महावीर का निर्वाण ई.पू.527 माना जाता है। आधुनिक जैन लेखकों में दिगम्बर परम्परा के पं. जुगलकिशोरजी मुख्तार एवं श्वेताम्बर परम्परा के मुनि श्री कल्याणविजयजी आदि ने भी वीरनिर्वाण ई.पू.527 वर्ष माना है। लगभग 7 वीं शती से कुछ अपवादों के साथ इस तिथि को मान्यता प्राप्त है। श्वेताम्बर परम्परा में सर्वप्रथम 'तित्थोगाली' नामक प्रकीर्णक में और दिगम्बर परम्परा में सर्वप्रथम 'तिलोयपण्णत्ति में स्पष्टरूप से यह उल्लेख मिलता है कि महावीर के निर्वाण के 505 वर्ष एवं 5 माह के पश्चात् शक नृप हुआ। ये दोनों ग्रन्थ ईसा की 6-7 वीं शती में निर्मित हुए हैं। इसके पूर्व किसी भी ग्रन्थ में महावीर के निर्वाणकाल को शक सम्वत् से समीकृत करके उनके अन्तर को स्पष्ट किया गया हो--यह मेरी जानकारी में नहीं है, किन्तु इतना निश्चित है कि लगभग 6-7 वीं शती से ही महावीर निर्वाण शक पूर्व 605 में हुआ थायह एक सामान्य अवधारणा रही है। इसके पूर्व कल्पसूत्र की स्थविरावली और नन्दीसूत्र की वाचक वंशावली में महावीर की पट्टपरम्परा का उल्लेख तो है, किन्तु इनमें आचार्यों के कालक्रम की कोई चर्चा नहीं है, अतः इनके आधार पर महावीर की निर्वाण तिथि को निश्चित करना एक कठिन समस्या है। कल्पसूत्र में यह तो उल्लेख मिलता है कि अब वीर निर्वाण के 980 वर्ष वाचनान्तर से 993 वर्ष व्यतीत हो चुके हैं। इससे इतना ही फलित
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