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________________ इस क्षेत्र की यात्रा की थी, तब भी यह क्षेत्र तीन ओर से पहाड़ियों से घिरा हुआ वनक्षेत्र ही था। उसके अति निकट लेखक को किसी ग्राम आदि की उपस्थिति नहीं मिली। यदि हम 'बहिया' का अर्थ नगर का बाह्य भाग मानें तथा उस स्थल को ऋजुवालिका नदी के उत्तर किनारे पर स्थित वनक्षेत्र के रूप में स्वीकार करें, तो भगवान् महावीर का केवलज्ञान स्थल वही सिद्ध होता है, जिसे आज श्वेताम्बर समाज महावीर का जन्मस्थल मान रहा है। आगम में केवलज्ञान स्थल को जंभियग्राम नगर का बहिर्भाग (बाहिया) कहा गया है। सामान्यतया, 'बहिया' या बहिर्भाग का अर्थ निकटस्थ स्थल माना जाता है, किन्तु आगमों के अनुसार उस काल में 20-25 किलोमीटर दूर स्थित स्थलों को भी उस नगर का बहिर्भाग ही माना जाता था, उदाहरणार्थ नालंदा को भी राजगृह का बहिर्भाग (तस्स णं रायगिहस्स नगरस्स बहिया उत्तर पुरत्थिमे दिसीभाए एत्थणं नालन्दा नाम-ज्ञातासूत्र अध्याय 7 का प्रारम्भिक सूत्र) कहा गया है, जबकि नालन्दा और राजगृह के बीच की दूरी लगभग 20 किलोमीटर है। अतः, वर्तमान लछवाड़ को जमुई (जम्भिय) का बाह्य विभाग माना जा सकता है। इस सम्बन्ध में कोई भी विप्रतिपत्ति नहीं है। वर्तमान में महावीर के जन्मस्थान के रूप में मान्य 'लछवाड़' महावीर का कैवल्य प्राप्ति का स्थान है। इसकी पुष्टि अन्य तथ्यों से भी होती है। प्रथमतः, इसके समीप बहने वाली 'ऊलाई' नामक नदी 'उजुवालिया' का ही अपभ्रंश रूप है, क्योंकि प्राकृत व्याकरण की दृष्टि से उजुवालिया का 'उलाई' रूप सम्भव है। सर्वप्रथम, लोप के नियमानुसार 'ज' का लोप होने पर और 'व' का 'उ' होने पर तथा तीनों ह्रस्व 'उ' का 'ऊ' होने पर ऊलिया रूप होगा, इसमें भी ऊ+ल+इ+य+ आ (ऊलइया) में 'इ'+'य' का दीर्घ 'ई' होकर 'आ' का स्थान परिवर्तन होकर 'ल' के साथ संयोग होने से 'ऊलाई' रूप बनता है। पुनः, संस्कृत के कुछ ग्रन्थों में उजुवालिया (ऋजुवालिकाः) के स्थान पर ऋजुकूला रूप भी मिलता है। प्राकृत के नियमों के अनुसार ऋ का 'उ', मध्यवर्ती ज का लोप होने पर 'जु' का 'उ' और मध्यवर्ती 'क' का लोप होने पर 'कू' का 'ऊ'-इस प्रकार उ+उ+ऊ+ला में दोनों हस्व 'उ' का दीर्घ 'ऊ' में समावेश होकर ऊला रूप बनता है, जिसमें मुख सुविधा हेतु 'ई' का आगम होकर ऊलाई रूप बनता है।
SR No.006187
Book TitleBhagwan Mahavir Ka Jivan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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