________________
में 'वेयावत्त' नामक चैत्य के उत्तर- -पूर्व दिशा भाग में न अति दूर और न अति निकट शालवृक्ष के नीचे उकडू होकर गोदुहासन से सूर्य की आतापना लेते हुए उर्ध्वजानु अधोसिर धर्म- ध्यान में निरत ध्यान कोष्ठक को प्राप्त शुक्ल ध्यान के अन्तर्गत वर्त्तमान वर्द्धमान को निवृत्ति दिलाने वाला प्रतिपूर्ण अव्याहत, निरावरण, अनन्त, अनुत्तर, श्रेष्ठ ज्ञान-दर्शन उत्पन्न हुआ।' सामान्यतया विद्वानों ने यहां यह मान लिया है कि भगवान् महावीर को जंभियग्राम के निकट ऋजुवालिका नदी के उत्तरी किनारे पर शामकगाथापति के खेत में शालवृक्ष के नीचे केवलज्ञान प्राप्त हुआ। उन्होंने इसमें बहिया और कठुकरणंसी जैसे शब्दों की ओर ध्यान नहीं दिया है । वर्त्तमान में श्वेताम्बर परम्परा जिसे महावीर का जन्मस्थल मान रही है, वह कच्चे मार्ग से वर्त्तमान जमुई से 7-8 कि.मी. से अधिक दूर नहीं है। इस मार्ग में ऊलाही नदी को दो-तीन बार पार करते हुए जाना पड़ता है, किन्तु यह मार्ग वस्तुतः मोटर, गाड़ी आदि के लिए नहीं है । वैसे यदि नदी के किनारे-किनारे खेतों में से यात्रा की जाए, तो मेरी दृष्टि में यह मार्ग 7 कि.मी. से अधिक नहीं है। लेखक ने स्वयं कच्चे मार्ग से कार से इस क्षेत्र की यात्रा की है। यदि हम जंभियग्राम को आधुनिक जमुई ही मानें, तो भी यह स्थान वहां से एक पहाड़ को पार करने पर 7-8 कि.मी. से अधिक नहीं रह जाता है। मेरी दृष्टि में 'बहिया' का अर्थ अति निकट न समझकर भियग्राम का बाह्य क्षेत्र समझना चाहिए। आज भी सामान्य रूप से किसी भी नगर के 8-10 कि.मी. के क्षेत्र को उस नगर का बाह्य भाग माना जाता है। यहाँ यह भी स्मरण रखना चाहिए कि सामान्यतया भगवान् महावीर अपने साधनाकाल में किसी भी बड़े नगर के अति निकट नहीं रहते थे। 'कठ्ठकरण' शब्द का जो कृषि भूमि या खेत अर्थ लगाया जाता है, वह मेरी दृष्टि में उचित नहीं है। 'कठ्ठकरण' का अर्थ जंगल या काष्ठ संग्रह करने का क्षेत्र-ऐसा होता है, कृषि क्षेत्र नहीं होता । पुनः, शामक को सामान्य गृहस्थ या कृषक न मानकर गाथापति कहा गया है। गाथापति सामान्यतया नगर के प्रतिष्ठित व्यक्ति को ही कहा जाता है। वस्तुतः, भगवान् महावीर केवलज्ञान प्राप्ति के पूर्व शामक गाथापति के वन क्षेत्र में साधना हेतु स्थित थे, अतः महावीर का केवलज्ञान स्थल वस्तुतः ऋजुवालिका नदी के उत्तरी किनारे का शामक गाथापति का वनक्षेत्र ही था, न कि कोई खेत । पुनः, वहां शालवृक्षों के होने का तात्पर्य भी यही है कि वह शालवृक्षों का वन रहा होगा। अतः, महावीर के केवलज्ञान स्थल को जंभिय ( वर्त्तमान जमुई) के ऋजुवालिका नदी के (उलाई) उत्तरी किनारे का वनक्षेत्र समझना चाहिए। लेखक ने लगभग 15 वर्ष पूर्व जब