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________________ जो युक्तिसंगत है, समुचित है, वही मुझे मान्य है। वस्तुतः, जो पक्षों का आग्रही है, वह सत्य का आग्रही नहीं हो सकता, इसीलिए गांधीजी ने सत्याग्रह की बात की थी। पक्षाग्रह एक प्रकार का राग ही है, यह सत्य को सीमित और विद्रूपित करता है। पक्षाग्रह से ही विवादों का जन्म होता है, उसके कारण ही सामाजिक जीवन में संघर्ष उत्पन्न होते हैं। वह विग्रह, विषाद और वैमनस्य के बीजों का वपन करता है। अतः, जीवन में अनाग्रही उदार दृष्टिकोण का विकास आवश्यक है। व्यावहारिक समाज-दर्शन के क्षेत्र में जैन जीवन का तीसरा सूत्र है- अनासक्त किन्तु कर्तव्यनिष्ठ जीवन शैली का विकास। जैन दर्शन की मान्यता है कि आसक्ति या तृष्णा ही समस्त दुःखों का मूल है। तृष्णा, भोगासक्ति, इच्छा/आकांक्षा और अपेक्षा से ही तनावों का जन्म होता है। ये तनाव प्रथमतः व्यक्ति को उद्वेलित करते हैं और उद्वेलित या विक्षुब्ध व्यक्ति अपने व्यवहार से परिवार, समाज, राष्ट्र और विश्व को विक्षुब्ध बनाता है। दूसरे शब्दों में, तृष्णा या आसक्ति न केवल वैयक्तिक जीवन की शान्ति भंग करती है, अपितु यह वैश्विक अशांति का भी मूल कारण है इसलिए आचारांगसूत्र में कहा गया है कि जहाँ-जहाँ ममत्ववृत्ति है, वहाँ-वहाँ दुःख है ही। यह ममत्ववृत्ति (मेरेपन का भाव) ही, तृष्णा ही भोगासक्ति को जन्म देती है। भोगासक्ति से भोगेच्छा जन्म होता है और यहीं से आकांक्षा और अपेक्षाओं का सृजन होता है। इसी के परिणामस्वरूप आज मानव प्रकृति के साथ संवाद स्थापित कर जीने के सामान्य नियम को भूलकर भोगवाद के एक विकृत मार्ग पर जा रहा है। आज मानव ने जिस उपभोक्तावादी संस्कृति विकसित की है, वही एक दिन मानव जाति की संहारक सिद्ध होगी। ___महावीर का कहना है कि आसक्ति या भोगासक्ति से जन्मी उपभोक्तावादी संस्कृति के तीन दुष्परिणाम होते हैं-1.अपहरण (शोषण), 2. प्रकृति के विरुद्ध भोग की प्रवृत्ति और 3. संग्रह या परिग्रह (संचयवृत्ति)। यद्यपि इन तीनों दुष्परिणामों से बचने के लिए जैन आचारशास्त्र में तीन व्रतों की व्यवस्था की गई है1. अस्तेय, अर्थात् दूसरों की आवश्यकता की सामग्री पर उनके अधिकार का हनन नहीं करना। 2. भोग और उपभोग की एक मर्यादा/सीमा रेखा निर्धारित करना, अर्थात् जीने के लिए खाना, न कि खाने के लिए जीना।
SR No.006187
Book TitleBhagwan Mahavir Ka Jivan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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