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________________ आरोपित या ओढ़ी गई गुलामी से मुक्त हो सकता है, क्योंकि उसमें आत्म-सजगता, विवेकशीलता और संयमन की शक्ति है। आवश्यकता है, उसे अपनी इस स्वतंत्र अस्मिता का या 'पर' निरपेक्ष स्व-स्वरूप का बोध कराने की । हमारी मोह निद्रा या अज्ञानदशा ही हमारे बंधन का हेतु है। हमें किसी दूसरी शक्ति ने बंधन में नहीं बांध रखा है, अपितु हम अपनी भोगासक्ति से स्वयं ही बंध गये हैं, अतः उससे हमें स्वयं ही ऊपर उठना होगा। स्व के द्वारा आरोपित 'कारा' को स्वयं ही तोड़ फेंकना होगा। किसी विचारक ने ठीक ही कहा है- 'स्वयं बंधे हैं, स्वयं खुलेंगे, सखे न बीच में बोल । ' इस प्रकार, महावीर की जीवनदृष्टि स्व की स्वतंत्र सत्ता के 'अस्मिता बोध' या 'स्वरूप बोध' का संदेश देती है। भारतीय जीवनदृष्टि की यह चर्चा व्यक्ति स्वयं की अपेक्षा से की गई है। बाह्य व्यवहार या सामाजिक जीवन दर्शन की अपेक्षा से उसने हमें तीन सूत्र दिये हैं 1. वैचारिक स्तर पर अनाग्रह 2. व्यवहार के स्तर पर अहिंसा 3. वृत्ति के स्तर पर अनासक्ति - आगे हम इनके सन्दर्भ में विस्तृत चर्चा करेंगे, किन्तु इसके पूर्व जैन धर्म के इस सूत्र वाक्य को समझ लेना आवश्यक है। जैन धर्म को परिभाषित करते हुए कहा गया है. स्याद्वादो वर्ततेऽस्मिन्, पक्षपातो न विद्यते । नास्त्यन्यं पीडनं किञ्चित्, जैन धर्मः स उच्यते ।। अर्थात्, जैनधर्म की जीवनदृष्टि का सार यह है कि व्यक्ति पक्षपात या वैचारिक दुराग्रहों से ऊपर उठकर अनाग्रही (स्याद्वादि) दृष्टि को अपनाये और अपने व्यवहार से किसी को किञ्चित् भी पीड़ा न दे। अहिंसा अर्थात् जीवन का सम्मान भारतीय चिन्तन में 'अहिंसा' शब्द एक व्यापक अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। जैन ग्रन्थ प्रश्नव्याकरणसूत्र में अहिंसा के निर्वाण, समाधि, शान्ति, विमुक्ति, क्षान्ति (क्षमाभाव), शिव (कल्याणकारक), पवित्र, कैवल्यस्थान आदि 60 पर्यायवाची नाम दिये हैं। संक्षेप में कहें, तो अहिंसा समस्त सद्गुणों की प्रतिनिधि है । सामान्य रूप में अहिंसा का अर्थ है
SR No.006187
Book TitleBhagwan Mahavir Ka Jivan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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