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________________ आज व्यक्ति अधिक तनावग्रस्त होता जा रहा है। मानव आज जिसे विकास समझ रहा है, वही किसी दिन मानवीय सभ्यता और संस्कृति के विनाश का कारण सिद्ध होगा। अतः, समत्वपूर्ण या समतावादी जीवनदृष्टि का विकास आवश्यक है। यही महावीर के दर्शन का लक्ष्य है। आत्मस्वातंत्र्य या परमात्म स्वरूप की उपलब्धि महावीर के जीवन दर्शन का दूसरा मुख्य संदेश आत्मस्वातंत्र्य है। यहाँ यह समझ लेना आवश्यक है कि भारतीय दर्शनों के अनुसार स्वतंत्रता का अर्थ स्वच्छन्दता नहीं है। उसके अनुसार स्वच्छन्दता अनैतिक है, पाप-मार्ग है और स्वतंत्रता नैतिकता है, धर्म है। सभी व्यक्तियों की यही आकांक्षा रहती है कि वे समस्त प्रकार की परतंत्रताओं या बंधनों से मुक्त हों। यहां परतंत्रता का अर्थ-दूसरों पर निर्भरता है। यहां तक कि श्रमण जीवन दर्शन पर-पदार्थों पर आश्रय ही नहीं, ईश्वर की दासता को भी स्वीकार नहीं करता। इसी बात को एक उर्दू शायर ने इस प्रकार कहा है "इंसा की बदबख्ती अंदाज के बाहर है। कमबख्त खुदा होकर भी बंदा नजर आता है।।' वह यह मानता है कि वे चाहे जो भी तत्त्व हों,जो हमें दासता की ओर ले जाते हैं, वे सभी हमारे सम्यक् विकास में बाधक हैं, अतः न केवल मनं एवं इन्द्रियों के विषय भोगों की दासता ही दासता है, अपितु किसी परम सत्ता की इच्छा के आगे समर्पित होकर अकर्मण्य हो जाना भी एक प्रकार की दासता ही है। महावीर का दर्शन उपास्य और उपासक, भक्त और भगवान् के भेद को शाश्वत मानकर चलने को भी एक प्रकार की परतंत्रता ही मानता है, इसलिए उनकी मुक्ति की अवधारणा यही रही है कि व्यक्ति परमात्म दशा को उपलब्ध हो जाए। 'अप्पा सो परमप्पा'-यह उनके जीवन दर्शन का मूल सूत्र है। वह यह मानता है कि तत्त्वतः आत्मा और परमात्मा में कोई भेद नहीं है। सभी प्राणी परमात्मरूप हैं। हम तत्त्वतः परमात्मा ही हैं। हममें और परमात्मा में यदि कोई भेद है तो वह इतना कि हम अभी अविकास की अवस्था में हैं, हम अपने में उपस्थित उस परमात्म सत्ता को पूर्णतया अभिव्यक्त नहीं कर पा रहे हैं। जैन दर्शन की सम्पूर्ण साधना का लक्ष्य परमात्मस्वरूप की उपलब्धि ही है। भारतीय वेदान्त का तो सूत्रवाक्य ही 'सर्वं खलु इदं ब्रह्म।' 'अयम् आत्मा ब्रह्म। तत्वमसि।' हममें और परमात्मा में वही अंतर है, जो एक बीज
SR No.006187
Book TitleBhagwan Mahavir Ka Jivan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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