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कर्मसिद्धि-संक्रमकरण-मार्गणाद्वार आदि अनेक ग्रंथसमूह के शिल्पी परमाराध्यपादाचार्य देवेश श्रीमद् विजयप्रेमसूरीश्वरजी महाराजा के पाटरूपी उदयाचल पर सूर्यसमान तपागच्छाधिपति पावापुरी गंधारादि अनेक तीर्थोद्धारक संघस्थविर युगप्रधानतुल्य महाराष्ट्र देशोद्धारक परमशासनप्रभावक सुविशाल सुविहित साढे तीन सौ मुनिगण शिरोमणि सम्यक्त्वरत्न प्रदानैकनिष्ठ अपनी देशना शक्ति से श्री अरिहंतदेव तथा गणधरदेव की वाणी की स्मृति करवानेवाले, कई सालोंसे दुर्लभ बने हुए दीक्षामार्ग को सुलभ बनानेवाले व्याख्यानवाचस्पति और वर्तमान सर्वसमुदाय में मुख्य आचार्यदेव श्रीमद् विजयरामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा की शुभनिश्रा में शेठश्री कल्याणजी परमानंदजी की पेढी सिरोही द्वारा शास्त्रानुसार एवं प्राचीन सुविहित परम्परानुसार चढावे बुलवाकर देवद्रव्य की महान वृद्धि करते हुए मूलनायक श्री ऋषभदेवस्वामी आदि समस्त जिनबिंबो का ध्वजदंड और कलश स्थापन करने के साथ ग्यारह दिन के महान महोत्सवपूर्वक वीरसंवत २५०५ विक्रमसंवत २०३५ की ज्येष्ठशुक्ला चतुर्थी ता. ३० मई १९८९ बुधवार के शुभमुहूर्त शुभलग्न तथा शुभ नवमांश में परमोल्लासपूर्वक प्रतिष्ठा करवाई है । इस ऐतिहासिक प्रतिष्ठा महोत्सव में उपरोक्त पूज्यपाद गच्छाधिपति के शिष्य प्रशिष्य पूज्य आचार्य विजयसुदर्शनसूरि महाराज, पू. आचार्यश्री महोदयसूरि महाराज, पू. पं. श्री भद्राननविजय गणी, पू. पं. श्री विचक्षणविजय गणी आदि विशाल मुनिगण की, पूज्य साध्वीजी जयाश्रीजी, पूज्य साध्वी श्री त्रिलोचनाश्रीजी आदि विशाल साध्वी समुदाय की तथा समस्त भारतवासी श्रावक श्राविकाओं की, इस प्रकार चतुर्विध श्री संघ की हजारो की संख्यामें उपस्थिति थी तथा समस्त भारतवासी श्री संघोने इस प्रसंग पर पधारकर पूजा-प्रभावना-सार्मिकभक्ति-चढावे-अभयदान और विशिष्ट धर्मकार्यो में लाभ लेकर अपूर्व शासनप्रभावना की है। जहां तक सूर्यचन्द्र की जगतमें स्थिति है वहां तक ये पांचो मंदिर वृद्धि को प्राप्त करे । श्री संघ का कल्याण हो । श्री युगादिदेव भवविरह प्रदान करे ।।
૨૯૨ " આબુ તીર્થોદ્ધારક