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जगजयवंत जीवावला
हृदय की बात.... जगजयवंत श्री जीरावला पार्श्वनाथ स्वामी का माहात्म्य लिखने का शुभ अवसर हमें प्राप्त हुआ, उसका हमें आनंद है। हमारे ‘जैन इतिहास' के विषय में चल रहे ऐतिहासिक कार्य के बीच में श्री जीरावला पार्श्वनाथ के संदर्भ में जो-जो बातें जानने को मिली... वह हमने यहाँ प्रगट की हैं.... प्रस्तुत ग्रंथ में इन सभी बातों का उल्लेख मिलेगा... अभी हमें इस तीर्थ का कुछ अप्रगट इतिहास प्राप्त हुआ है जो निम्न है.... • एक मान्यता के अनुसार जीरावला पार्श्वनाथ दादा की मूल प्रतिमाजी
जगन्नाथपुरी (ओडीशा) में पूर्व में विराजमान थी। जब अजैनों द्वारा हमले हए तब जैन श्रावकों ने जान की बाजी लगाकर प्रतिमाजी को बचा लिया। उस समय में जीरावला दादा का प्राचीन तीर्थ एक अन्यधर्मी मंदिर में परिवर्तित हो गया। आक्रमण के कारणवश 15वीं से 17 वीं शताब्दी तक जीरावला तीर्थ में मूलनायक के रूप में श्री महावीरस्वामी रहे और उसके बाद श्री नेमनाथ प्रभुजी रहे... सं. 2020 में प. पू. मु. तिलोकविजयजी म. द्वारा मालवा से लाई हुई अभिनव जीरावला पार्श्वनाथ की प्रतिमाजी स्थापित की गई।
जो वर्तमान में 2 प्रतिमाजी हैं वो पूर्व में भोयरे में स्थापित थीं। • फिर पुनः प्रतिष्ठा करनी थी... लेकिन योग्य मुहूर्त न होने से पीछे एक
कोठड़ी में परोणागत विराजमान कर दी गई। • जीरावला दादा पार्श्वनाथ प्रभु के समय में ही निर्मित हुए थे, वह परमात्मा
की मूर्ति बालू रेत की है और विलेपन किया हुआ है। • परमात्मा के अधिष्ठायक व नीचे विराजमान पद्मावती देवी की प्रतिमाजी
सं. 2020 में विराजमान की होगी, लेख नहीं है.... लेकिन शैली नयी
ही है। • जीरावला तीर्थ में 52 देवरीओं में, अंतिम जीर्णोद्धार के पूर्व भगवान नहीं
1. - Jain Shrines in India
- जैन धर्म का इतिहास-कैलाशचंदजी जैन 2. श्री जीरावला तीर्थ दर्शन।
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