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________________ जगजयवंत जीवावला 3. ??? ???? ?? ?? की कि यदि यह महान् संकट टल गया तो वह जीवन पर्यंत जीरावला पार्श्वनाथ के नाम की माला जपे बिना अन्न जल ग्रहण नहीं करेगा। उधर कुछ समय पश्चात् सम्राट का क्रोध शान्त हुआ। उन्हें अपने हक्म पर पश्चाताप हआ। सम्राट ने मार डालने का हुक्म वापस ले लिया और उसके विरुद्ध जो बातें सुनी थी उसकी जांच आरंभ की। जांच के बाद सम्राट को मालूम हुआ कि सेठ के विरुद्ध कही गई बातें निराधार और बनावटी है। सम्राट ने मेघासा की ईमानदारी, वफादारी और सच्चाई पर प्रसन्न होकर एक गाँव भेंट में दिया। 4. एक बार 50 लुटेरे इकट्ठे होकर आधी रात के समय चोरी के इरादे से मंदिर में घुसे और अन्दर जाकर सब सामान और नकदी सम्भाल ली। हर एक ने अपने लिये एक-एक पोटली बांध कर सिर पर रखी और जिस तरफ से अन्दर घुसे थे उसी ओर से बाहर जाने लगे। इतने में सबकी आँखों के आगे अंधेरा छा गया और उन्हें कुछ भी दिखाई न देने लगा वे जिधर जाते उधर ही उनका पत्थरों से सिर टकराता। पत्थरों की चोटें खाकर उनके सबके सिरों से खून बहने लगा। इस प्रकार निकलने का प्रयत्न करते हुए रात गुजर गई। सुबह वे सब पकड़ लिये गये। 5. जीरापल्ली स्तोत्र के रचयिता आचार्य मेरुतुङ्गसूरि जब वृद्धावस्था के कारण क्षीणबल हो गये तब उन्होंने जीरावला की ओर जाते हुए एक संघ के साथ ये तीन श्लोक लिखकर भेजे - 1. जीरापल्ली पार्श्व यक्षेण सेवितम्। अर्चितं धरणेन्द्रेन पद्मावत्या प्रपूजितम्।।1।। 2. सर्व मन्त्रमयं सर्वकार्य सिद्धिकरं परम्। ___ध्यायामि हृदयाम्भोजे भूत प्रेत प्रणाशकम्॥2॥ 3. श्री मेरुतुङ्गसूरीन्द्रः श्रीमत्पार्श्व प्रभोः पुरः। ध्यानस्थितं हृदिध्यायन् सर्वसिद्धिं लभे ध्रुवम्॥3॥ संघपति ने जब उन तीनों श्लोकों को भगवान के सामने रखा तो अधिष्ठायक देव ने संघ की शांति के लिये सात गुटिकायें प्रदान की एवं यह निर्देश दिया कि आवश्यकता पड़ने पर इन गुटिकाओं का प्रयोग करें। - 47
SR No.006176
Book TitleJiravala Parshwanath Tirth Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherMission Jainatva Jagaran
Publication Year2016
Total Pages64
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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