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जगजयवंत जीरावला माता पिता के कल्याण के लिये भगवान् चन्द्रप्रभ की मूर्ति बनवा कर जीरापल्लीगच्छ के उदयरत्नसूरि द्वारा प्रतिष्ठित करवाई थी। यह प्रतिमा बडौदा के दादा पार्श्वनाथ मंदिर में विराजमान है। इसी गच्छ के शालिभद्रसूरि की पाट परम्परा में हुए उदयचन्द्रसूरि द्वारा प्रतिष्ठित भगवान पार्श्वनाथ की धातु मूर्ति म्यूनिख (जर्मनी) के म्युजियम में विद्यमान है।
(पूर्णचन्द्र नाहर जैन लेख संग्रह खण्ड - 1 लेख 396) वि. सं. 1527 में ओसवाल जाति के कुछ श्रावकों ने लखनऊ में शान्तिनाथ बिम्ब की प्रतिष्ठा जीरापल्ली गच्छ के उदयचन्द्रसूरि द्वारा करवाई थी।
जीरापल्ली गच्छ के भट्टारक देवरत्नसूरि के संतानीय मुनि सोमकलश द्वारा लिखित चित्रसेन पद्मावती कथा (वि. सं. 1524) की प्रति पाटन के जैन भण्डार में सुरक्षित है।
विसं. 1602 में जीरापल्लीय गच्छ में लिखित श्राद्ध प्रतिक्रमण सूत्र वृत्ति की एक प्रति जैनानंद पुस्तकालय सूरत में विद्यमान है। इस प्रकार हम देखते हैं कि जीरावला गच्छ में उत्पन्न आचार्यों ने बहुत कार्य किया है परन्तु उनके उल्लेख काल कवलित हो गये हैं। ___ जीरापल्ली ही जीरावला, तीर्थ का प्राचीन नाम रहा है.... पल्ली (छोटे कस्बे के लिए) जयराज राजा की पल्लि, जयराजपल्ली, जीरापल्ली, जीराउल्ली, जीरउला, जीरावला, जीरिकापल्ली आदि सब नाम एक नाम के ही अपभ्रंश रूप हैं।
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