________________
जगजयवंत जीरावला
जीरावलाजी तीर्थ से जीरापल्ली गच्छ का सफर...
एक तीर्थ... जिसके महत्त्व के कारण एक गच्छ का नाम रखा गया है.... गच्छ के आचार्यों की प्रभावकता व जैन शासन निष्ठा एक श्रेष्ठ उदाहरण है...
विक्रम की 16वीं शताब्दी में ब्रह्मर्षि ने सुधर्मगच्छ परीक्षा में चौरासी गच्छों में जीरावला गच्छ का उल्लेख किया है जीरावला तीर्थ की इतनी महिमा है कि इसके नाम से एक गच्छ प्रसिद्धि को प्राप्त हुआ। इस गच्छ की स्थापना कब हुई, यह तो कहा नहीं जा सकता पर 15वीं शताब्दी में इस गच्छ के आचार्यों के कुछ उल्लेख प्राप्त होते हैं। इस गच्छ के प्रसिद्ध आचार्य रामचन्द्रसूरि द्वारा प्रतिष्ठित भगवान ऋषभदेव की प्रतिमा उदयपुर के जैन मंदिर में प्रतिष्ठित है।
( जैन लेख संग्रह खंड -2, लेख 1049 - पूर्णचन्द्र नाहर ) इसी गच्छ के शालिभद्रसूरि द्वारा प्रतिष्ठित सं. 1440 पोष सुदी 11 के दिन स्थापित शांतिनाथ भगवान की मूर्ति बड़ौदा के गोड़ी पार्श्वनाथ मंदिर में विद्यमान
है।
( जैन प्रतिमा लेख संग्रह भाग 2 लेख 214) वि. सं. 1449 के बैशाख सुदी 6 शुक्रवार के दिन प्राग्वाट चाहड की पत्नी चापलदे के पुत्र जेसल ने शालीभद्रसूरि के द्वारा भगवान् पद्मप्रभ की मूर्ति की प्रतिष्ठा करवाई थी।
—
( अर्बुद प्राचीन जैन लेख संदोह लेख 603)
वि. सं. 1668 वैशाख वदी 3 शुक्रवार के दिन ओसवाल वंशीय रामाजी की भार्या देवी के पुत्र माधव ने श्रेयांसनाथ भगवान की पंचतीर्थी प्रतिमा जीरापल्ली गच्छ के वीरभद्रसूरि द्वारा प्रतिष्ठित करवाई थी । यह मूर्ति खंभात के नवखण्डा पार्श्वनाथ जिनालय में विद्यमान है।
(जैन प्रतिमा लेख संग्रह भाग - 2 लेख 874) वि. सं. 1477 में ओसवाल वंश के पांचा ने भगवान महावीर की मूर्ति शालिभद्रसूरि द्वारा प्रतिष्ठित करवाई थी। यह मूर्ति मातर के सुमतिनाथ बावन जिनालय मंदिर में विद्यमान है।
(जैन प्रतिमा लेख संग्रह भाग - 2 लेख 461 ) वि. सं. 1483 वैशाख सुदी 5 गुरुवार के दिन सूदाजी ओसवाल ने अपने
44