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________________ जगजयवंत जीवावला प्राचीन साहित्य में जीरावला तीर्थ के आलेख... किसी भी तीर्थ की प्राचीनता जाननी हो तो सबसे पहला संदर्भ है ‘साहित्य' प्राचीन साहित्य के उल्लेख से हमें पता लगता है कि जीरावला तीर्थ की नौंध प्राचीन ग्रंथों ने ली थी। इससे तीर्थ की प्राचीनता व प्रभावकता प्रतीत होती है... जीरावला तीर्थ व पार्श्वनाथ प्रभु के संदर्भ में कई प्राचीन स्तोत्र भी मिलते हैं जो जीरावला पार्श्वनाथ प्रभु के अतिशय का वृत्तांत देते हैं... आइए यात्रा करते हैं जीरावला तीर्थ के साहित्य की.... ___ जीरावला तीर्थ से संबंधित बड़े-बड़े आचार्यों ने स्तोत्रों की रचना की है। उनके नाम इस प्रकार हैं श्री सौभाग्यमूर्ति जी-श्री पार्श्वजिन स्तोत्रम्। श्री लक्ष्मीसागरसूरिजी - श्री पार्श्वजिन स्तवनम्। श्री उदयधर्मगणि - श्री जीरापल्ली पार्श्वजिन स्तवनम्। श्री सिद्धान्तरूचि- श्री जयराजपुरीश श्री पार्श्वजिन स्तवनम् - श्री जयराजपल्ली मण्डन श्री जिन स्तवनम् श्री महेन्द्रसूरिजी - श्री जीरिकापल्ली तीर्थालङ्कार श्री पार्श्वजिन स्तवन-3 भुवनसुन्दरसूरि राणकपुर तीर्थ की प्रतिष्ठा करवाने वाले आचार्य सोमसुन्दर सूरि के तीसरे शिष्य थे। ये बड़े विद्वान थे एवं इन्होंने कई काव्यों की रचना की थी। इसी संघाडे के श्री लक्ष्मीसागरसूरिजी को सं. 1508 में सूरि पद की प्राप्ति हुई थी। इन्होंने ईडरगढ़ पर अजितनाथ भगवान की मूर्ति की प्रतिष्ठा की थी। सिरोही के तत्कालीन तहाराव लाखा के मंत्री उजलसी एवं काजा द्वारा करवाये गये कई धार्मिक अनुष्ठानों में इन आचार्य की उपस्थिति रही है। इन्होंने आबू, अचलगढ़ आदि पर कई जैन मूर्तियों की प्रतिष्ठा करवाई। इन उजलसी और काजा ने लक्ष्मी सूरिजी के शिष्य सोमजयसूरि के साथ जीरावला की यात्रा की थी एवं सप्ताह्निका महोत्सव करवाया था। ‘श्री सोमदेवः सह सूरिभिः पुरा यौ जीरपल्लयाँ जिनपार्श्ववन्दनम् अकारिषातामिह सप्तवासरान् महेन यावत् कर मोचनादिना।65।' (गुरु रत्नाकर काव्य सर्ग-3) 36
SR No.006176
Book TitleJiravala Parshwanath Tirth Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherMission Jainatva Jagaran
Publication Year2016
Total Pages64
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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