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जगजयवंत जीवावला इस मूर्ति को आज दादा पार्श्वनाथ की मूर्ति के नाम से जाना जाता है।
धांधलजी द्वारा निर्मित इस नवीन पार्श्वनाथ मंदिर की प्रतिष्ठा वि. सं. 1191 में आचार्य श्री अजितदेवसूरि ने की। वीर वंशावली में इसका उल्लेख इस प्रकार दिया गया है -
'तिवारइं धाधलई प्रासाद निपजावी महोत्सव वि. सं. 1191 वर्षे श्री पार्श्वनाथ प्रासादे स्थाप्या श्री अजित-देवसूरि प्रतिष्ठया'
इस प्रकार यह तीसरी बार की प्रतिष्ठा थी। पहली (वि. सं. 331) अमरासा के समय में आचार्य देवसूरिजी ने करवाई।'
दूसरी बार मंदिर का निर्माण यक्षदत्त गणी के शिष्य वटेश्वरसूरिजी ने आकासवप्र नगर के नाम से मंदिर की स्थापना की। कुछ इतिहासकार वटेश्वरसूरिजी द्वारा प्रतिष्ठित आकाशवप्र नगर के मंदिर की बात विवादास्पद होने के कारण स्वीकार नहीं करते हैं। उनके अनुसार मंदिर की प्रतिष्ठा तीसरी बार हुई न कि मंदिर का निर्माण। पहली प्रतिष्ठा आचार्य देवसरिजी ने, दसरी प्रतिष्ठा आचार्य हरिभद्रसूरिजी ने और तीसरी बार यह प्रतिष्ठा आचार्य अजितदेवसूरिजी ने की। ___ धांधलजी द्वारा निर्मित मंदिर व मूर्ति को नुकसान अलाउद्दीन खिलजी के द्वारा पहुँचाने की बात की पुष्टि जीरापल्ली मण्डन पार्श्वनाथ विनती नाम के एक प्राचीन स्त्रोत से इस प्राकर से होती है - ___ “तेरसई अडसट्टा (1368) वरिसिंहिं, असुरह दलु जीतउ जिणि हरिसिंहि भसमग्रह विकराले।” (कडी 9)
‘कान्हडदेव प्रबंध' के अनुसार एवं अन्य ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर यह ज्ञात होता है कि संवत् 1367 में अलाउद्दीन खिलजी ने सांचोर के महावीर मंदिर को नष्ट किया और उसी समय उसने जीरावला के मंदिर को भी नुकसान पहुँचाया।
उपदेश तरंगिणी के पृष्ठ 18 के अनुसार सिंघवी पेथडसा ने संवत् 1321 में एक मंदिर बनवाने की बात लिखी है परंतु शायद यह मंदिर आक्रमणकारियों द्वारा नष्ट कर दिया गया होगा।
महेश्वर कवि लिखित काव्य मनोहर नामक ग्रंथ के सातवें सर्ग के 32वें श्लोक में लिखा हुआ है कि मांडवगढ़ के बादशाह आलमसाह ने दरबारी श्रीमान वंशीय 1. जीर्णोद्धार संबंधी तीन मतांतर पाये जाते हैं -
1. धांधल, 2. अमटसा, 3. पू. वटेश्वरसूरिजी द्वारा आकाशमार्ग से मंदिर लाना।
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