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________________ जगजयवंत जीरावला सिद्धराज के पश्चात् यह प्रदेश कुमारपाल के शासन का अंग था। उसने जैन धर्म अंगीकार किया और जैनाचार्यों और गुरुओं को संरक्षण प्रदान किया। उसके द्वारा कई जैन मंदिरों के निर्माण का उल्लेख मिलता है । किराडू के वि. सं. 1205 और 1208 के कुमारपाल के अभिलेख से उसके राज्य का विस्तार यहाँ तक होना सिद्ध होता है। जालोर से प्राप्त वि. सं. 1221 के कुमारपाल के शिलालेख से भी इस बात की पुष्टि होती है । कुमारपाल के पश्चात् अजयपाल के राज्य का यह अंग था। गुजरात के शासक अजयपाल और मृलराज के समय में यहाँ पर परमार वंशीय राजा धारावर्ष का शासन था। मुहम्मदगोरी की सेना के विरुद्ध हुए युद्ध में उसने भाग लिया था। वि. सं. की तेरहवीं शताब्दी तक यहाँ पर परमारों का शासन रहा । वि. सं. 1300 के लगभग उदयसिंह चौहान का यहाँ शासन रहा । भिन्नमाल में वि. सं. 1305 और 1306 के शिलालेख प्राप्त हुए हैं जो उसके शासन के होने के प्रमाण हैं। उस समय उसकी राजधानी जालोर थी । उदयसिंह के पश्चात् उसके पुत्र चाचिगदेव का यहाँ राज्य रहा। वि.सं. 1313 का चाचिगदेव का एक शिलालेख सुन्धा पर्वत पर प्राप्त हुआ है। चाचिगदेव के पश्चात् दशरथ देवड़ा का यहाँ शासन रहा । वि. सं. 1337 के देलवाड़ा के अभिलेख में उसे मरुमण्डल का अधीश्वर बताया गया है । वि. सं. 1340 के लगभग यह प्रदेश बीजड़ के अधीन रहा । बीजड़ के बाद लावण्यकर्ण ( लूणकर्ण) लुम्भा के अधीन यह प्रदेश था । लुम्भा बहुत ही धर्म सहिष्णु था। परमारों के शासनकाल में आबू के जैन मंदिरों की यात्रा करने वाले यात्रियों को कर देना पड़ता था। लुम्भा ने उसे माफ कर दिया। उसने आसपास के इलाकों में बहुत जैन मंदिर बनाने में धन व्यय किया। हो सकता है जीरावला को भी उनका सहयोग मिला हो। अलाउद्दीन की सेनाओं ने जब जालोर आदि स्थानों पर हमला किया तो इस मंदिर पर भी आक्रमण किया गया। इस मंदिर के पास में ही अम्बादेवी का एक वैष्णव मंदिर था । अत्याचारियों ने पहले उस मंदिर की धन सम्पत्ति को लूटा और सारा मंदिर नष्ट भ्रष्ट कर दिया। उस मंदिर में बहुत सी गायों का पालन पोषण होता था। हिन्दुओं की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने के लिये उन अत्याचारियों ने उन गायों को भी मार दिया। वहाँ से वे जीरावला पार्श्वनाथ के मंदिर की ओर बढ़े। मंदिर में जाकर उन्होंने गो-मांस और खून छांटकर मंदिर को अपवित्र करने की कोशिश की। ऐसा कहते हैं कि मंदिर में रुधिर छांटने वाला व्यक्ति बाहर आते ही 26
SR No.006176
Book TitleJiravala Parshwanath Tirth Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherMission Jainatva Jagaran
Publication Year2016
Total Pages64
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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