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________________ जगजयवंत जीरावला का निर्माण कराया। उद्योतनसूरिजी के विद्यागुरु आचार्य हरिभद्रसूरि थे। जो चित्रकूट (वर्तमान चित्तौड़) निवासी थे। उन्हें जीरावला के मंदिर की पुनः प्रतिष्ठा से सम्बन्धित बताया जाता है। अपने जैन साहित्य के संक्षिप्त इतिहास के पृष्ठ 133 पर मोहनलाल दलीचंद देसाई ने आकाशवप्र नगर को अनन्तपुर नगर से जोड़ा है। मुनि कल्याणविजयजी ने इस नगर को अमरकोट से जोड़ा है। पर वटेश्वरसूरिजी का आकाशवप्र सिंध का अमरकोट नहीं हो सकता। वह तो भीनमाल के आसपास के प्रदेशों में ही होना चाहिये था, और वह मंदिर भी प्रसिद्ध होना चाहिये। यह दोनों ही शर्तें जीरावला के साथ जुड़ी हुई हैं। क्योंकि जैन तीर्थ प्रशस्ति में जीरावला को विशिष्ट स्थान प्राप्त है। विक्रम संवत् की सातवीं शताब्दी के अन्त में यहाँ पर चावड़ा वंश का राज्य रहा। वसन्तगढ़ के वि. सं. 682 के शिलालेख से इस बात की पुष्टि होती है। इस लेख के अनुसार संवत् 682 में वर्तलात नाम के राजा का वहाँ पर शासन था और उसकी राजधानी भीनमाल थी । वर्तलात के पश्चात् उसके उत्तराधिकारी व्याघ्रमुख का यहाँ पर शासन था। वलभीपुर के पतन के पश्चात् वहाँ पर एक भयंकर दुर्भिक्ष पड़ा। अतः वहाँ के बहुत से लोग यहाँ आकर बस गये। पोरवाल जाति को संगठित करने वाले जैनाचार्य सूरिपुरंदर हरिभद्रसूरिजी ने (वि. सं. 757 से 827) यहाँ की यात्रा की और इस मंदिर की पुनः प्रतिष्ठा करवायी । सिद्ध सारस्वत स्तोत्र के रचयिता बप्पभट्टसूरि भीनमाल, रामसीन, जीरावला एवं मुण्डस्थल आदि तीर्थों की यात्रा कर चुके थे। आठवीं सदी के प्रारंभ में यह प्रदेश यशोवर्मन के राज्य का अंग था । इतिहास प्रसिद्ध प्रतिहार राजा वत्सराज के समय में यह प्रदेश उसके अधीन था। उसकी राजधानी जाबालिपुर (जालौर) थी। उसकी मृत्यु के पश्चात् उसके पुत्र नागभट्ट ने वि. सं. 872 में इस प्रदेश पर राज्य किया । नागभट्ट ने जीरावला के पास नागाणी नामक स्थान पर नागजी का मंदिर बनवाया जो आज भी टेकरी पर स्थित है। वह अपनी राजधानी जालोर से कन्नौज ले गया। महान जैनाचार्य सिद्धर्षि और उनके गुरु दुर्गस्वामी ने वि. संवत् की दसवीं सदी में यहाँ की यात्रा की। दुर्गस्वामी का स्वर्गवास भिन्नमाल (भीनमाल ) नगर में हुआ था । नागभट्ट की मृत्यु के पश्चात् उसके उत्तराधिकारियों में रामचन्द्र, भोजराज और महेन्द्रपाल प्रमुख हैं। उन्होंने इस प्रदेश पर शासन किया। प्रतिहारों के पतन के पश्चात् यह प्रदेश परमारों के अधीन रहा। परमार राजा सियक (हर्षदेव) का यहाँ शासन होना सिद्ध हुआ है। ग्यारहवीं 24
SR No.006176
Book TitleJiravala Parshwanath Tirth Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherMission Jainatva Jagaran
Publication Year2016
Total Pages64
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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