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________________ जगजयवंत जीरावला का ही लेख है पर पैंतीसवीं व छत्तीसवीं देहरी के बीच के खम्भों पर संवत् 1233 वि. 1133 वि. 1333 वि. के अवाच्य लेख हैं। छत्तीसवीं देहरी में शान्तिनाथ एवं महावीर स्वामी की दो प्रतिमाएँ प्रतिष्ठित हैं। अडतीसवीं पर भी वही 1483 का लेख है । पर इसमें पार्श्वनाथ भगवान के दोनों ओर शान्तिनाथ भगवान की प्रतिमाएँ विराजमान हैं। उंचालीसवीं कुलिका में बीच में सम्भवनाथ भगवान के दोनों ओर पार्श्वनाथ भगवान की मूर्तियाँ हैं । इस देहरी के बाहर गोखले में श्रेयांसनाथ भगवान की मूर्ति है । सामने बरामदे के खम्भे पर सं. 1534 का लेख है, जिसमें मालगाँव निवासी सेठ का नाम है । 1 अब वह कमरा आ गया, जिसमें प्रवेश करते ही पाँच प्रतिमाएँ बाएँ हाथ की तरफ विराजमान हैं। यहीं दीवार में महान् चमत्कारिक स्वस्तिक यंत्र उत्कीर्ण है।' मंदिर में समय समय पर सुधार होता रहा है पर मन्दिर की प्राचीनता के दर्शन यहीं होते हैं। यहीं पर ये सामने सं. 1685 वि. के दो काउसग्गिए दिखाई देते हैं, इन दाँ - बाँए की आमने-सामने की देहरियों में महावीरस्वामी की प्रतिमाएँ प्रतिष्ठित हैं। इस कक्ष में दाहिनी तरफ स्वस्तिक यंत्र के सामने 24 जिनमाताओं का पट है। इसी कक्ष में संवत् 1525 वि. की धातुप्रतिमा है जिस पर आ. जिनसुन्दरसूरिजी के शिष्य जिनहर्षसूरिजी का नाम है। चालीसवीं देहरी पर 1483 वि. स्तम्भ लेख के अतिरिक्त 1421 वि. का लेख है जिसमें आचार्य कक्कसूरिजी के शिष्य का नाम आया है। इस देहरी में कलियुग पार्श्वनाथ, श्रीशंखलपुर पार्श्वनाथ एवं नीलकंठ पार्श्वनाथ विराजित हैं। इकतालीसवीं देहरी पर दो लेख हैं एक सं. 1421 का व दूसरा 1483 का इसका जीर्णोद्धार भुवनसुन्दरजी के उपदेश से हुआ था। इसमें इस समय गेला पार्श्वनाथ, सहस्त्रफणा पार्श्वनाथ तथा दौलतीया पार्श्वनाथ विराजमान हैं। बीयालीसवीं देहरी में आदीश्वर भगवान, सुरसरा पार्श्वनाथ एवं शीतलनाथ भगवान हैं। देहरी पर संवत् 1421 का लेख है जो पढ़ने में नहीं आता। त्रियालीसवीं देहरी पर भी यही लेख है एवं बाजू के खम्भे पर 1483 का लेख है इसमें वर्तमान में श्रेयांसनाथ, पार्श्वनाथ एवं महावीरस्वामी भगवान विराजमान हैं। पैंतालीसवीं देहरी पर शायद सं. 1413 का लेख है एवं बाजू के खम्भे पर 1483 विक्रमी का ही लेख है। इसमें गोड़ी पार्श्वनाथ, शान्तिनाथ एवं मुज्जपरा पार्श्वनाथ भगवान की मूर्तियाँ हैं । छियालीसवीं कुलिका पर कोई लेख नहीं है। 1. अब यह यंत्र कहाँ है? यह प्रश्न है..... 19
SR No.006176
Book TitleJiravala Parshwanath Tirth Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherMission Jainatva Jagaran
Publication Year2016
Total Pages64
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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