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जगजयवंत जीवावला हैं। इस कुलिका के पास पटों की कुलिका है, इसमें सामने तीर्थाधिराज अष्टापदजी का पट है। दाहिने हाथ की तरफ तीर्थराज गिरनार व बाईं तरफ आबूराज के पट हैं। इसके बाद सत्ताइसवीं देहरी में आदीश्वर भगवान, पार्श्वनाथ भगवान एवं धर्मनाथ भगवान विराजित हैं, इसके सामने बराण्डे के खम्भों पर दो लेख हैं। एक पर (सं. 1487 के) आचार्य धर्मशेखरसूरिजी के शिष्य देवचंद्रजी के नित्य प्रणाम का उल्लेख है एवं दूसरे खम्भे पर सहलसुन्दरजी के नित्य वंदन का लेख है। ये देवचंद्रसूरि कासद्रह गच्छ के ज्ञात होते हैं। ___ अट्ठाइसवी देवकुलिका पर चार लेख हैं ऊपर के लेख में आ. जिनदत्तसूरिजी का नाम आया है। संवत् पढ़ने में नहीं आता है। इसके नीचे के दूसरे लेख को भी पढ़ा नहीं जा सकता है एवं कुलिका के दोनों तरफ के खम्भों पर संवत् 1487 वि. के लेख हैं जो जीर्णोद्धार के हैं। इस कुलिका में जेरींग पार्श्वनाथ एवं धींगडमल्ला पार्श्वनाथ विराजे हुए हैं। __उन्तीसवीं देवकुलिका पर सं. 1483 की वैशाख सुदि 13 का लेख है इसमें अचलगच्छ के महान् आचार्य मेरूतुङ्गसूरिजी का नाम आया है, जो किसी संघ को लेकर यहाँ पधारे थे। ये मेरूतुङ्गसूरिजी आचार्य महेन्द्रप्रभसूरिजी के शिष्य थे एवं बड़े समर्थ आचार्य थे। इस देवकुलिका में सुपार्श्वनाथ, पार्श्वनाथ एवं मुनिसुव्रतस्वामी की प्रतिमाएं हैं। __तीसवीं देवकुलिका में महावीरस्वामी, दूधिया पार्श्वनाथ एवं ककडेश्वर पार्श्वनाथ प्रतिष्ठित हैं। इकतीसवीं देहरी में वासुपूज्य स्वामी, पार्श्वनाथ एवं शान्तिनाथ भगवान की प्रतिमाएँ हैं, इस देहरी का जीर्णोद्धार मीठडिया गौत्र के ओसवाल संग्रामजी के पुत्र सलखा के पुत्र तेजा एवं उनकी पत्नी तेजलदेवी के पुत्रों ने करवाया था। उपदेश देने वाले आचार्य थे मेरूतुङ्गसूरिजी के शिष्य जयकीर्तिसूरिजी।
बत्तीसवीं देहरी में वर्तमान में रायण्या पार्श्वनाथ, दुःखभंजन पार्श्वनाथ एवं नाकला पार्श्वनाथ प्रतिष्ठित हैं। इस देहरी का जीर्णोद्धार भी 1483 में हुआ था।
तेतीसवीं कुलिका में पार्श्वनाथ, गाडरिया पार्श्वनाथ एवं आदीश्वर भगवान की मूर्तियाँ हैं। चौतीसवीं देहरी में डोकरिया पार्श्वनाथ, गाडरिया पार्श्वनाथ एवं आदिश्वर भगवान प्रतिष्ठित हैं। पेंतीसवीं कुलिका में भगवान सुमतिनाथ, नाकोड़ा पार्श्वनाथ एवं पार्श्वनाथ भगवान विराजते हैं। पैंतीसवीं कुलिका पर तो 1483 वि.
1. वर्तमान में कासिन्द्रा।
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