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जगजयवंत जीवावला इति श्रीजीरिकापल्ली स्वामी पार्श्वजिनः स्तुतः। श्री मेरूतुङ्गसूरेः स्तात् सर्वसिद्धिप्रदायकः।।
इस सातवीं देवकुलिका में फलोदी पार्श्वनाथ व शान्तिनाथ भगवान प्रतिष्ठित हैं। इसके 1481 के लेख सोमचन्द्रसूरि, मुनि सुन्दरसूरि, जयचन्द्रसूरि, भुवनसुन्दरसूरि के नाम है। आचार्य सोमसुन्दरसूरि का समय 1456 से 1500 वि. का है इन्होंने तारंगा व राणकपुर के मन्दिरों की प्रतिष्ठा की थी। इनके नाम से जैन साहित्य में एक युग माना जाता है, इनके शिष्य मुनिसुन्दरसूरि, जयचन्द्रसूरि एवं भुवनसुन्दरसूरि बहुत विद्वान लेखक व उपदेशक थे। 'मुनिसुन्दरसूरिजी ने देलवाड़ा में महामारी की शान्ति हेतु संतिकरं स्तवन की रचना की थी एवं रोहिड़ा ग्राम में टिड्डी के उत्पात का शमन किया था। इन्होंने 108 हाथ लम्बा विज्ञप्ति पत्र अपने दादा गुरुदेव सोमसुन्दरसूरि की सेवा में भेजा था। जिनके तीसरे स्तोत्र का गुर्वावली नाम का एक विभाग अभी प्राप्य है जिसमें भगवान महावीर से लेकर सोमसुन्दरसूरि युग तक के तपागच्छ आचार्यों का प्रामाणिक इतिहास है। दूसरे आचार्य जयचंद्रसूरि एवं तीसरे भुवनसुन्दरसूरि बहत बड़े विद्वान थे एवं इन्होंने भी कई संस्कृत प्राकृत ग्रंथों की रचना की है। __ आठवीं देहरी : इसमें करहेडा पार्श्वनाथ नाकोड़ा (नवकोटि) पार्श्वनाथ एवं कापरड़ा पार्श्वनाथ प्रतिष्ठित हैं। इस पर भी संवत् 1481 का ही लेख है।
नवी देवकुलिका में मनमोहन पार्श्वनाथ, गोडी पार्श्वनाथ एवं पोसीना पार्श्वनाथ की प्रतिमाएँ विराजित हैं, लेख वही संवत् 1481 का है।
दसवीं देहरी पर लेख संवत् 1483 भाद्रपद कृष्णा 7 गुरुवार का है इसमें नेमिनाथजी, पार्श्वनाथजी एवं मल्लिनाथजी की दो प्रतिमाएँ प्रतिष्ठित हैं। ग्यारहवीं से 19 वीं देवकुलिकाओं पर भी इसी संवत् के लेख हैं, इसमें कलिकुण्ड पार्श्वनाथ एवं कल्याण पार्श्वनाथ की प्रतिमाएँ हैं। बारहवीं देहरी में शीतलनाथ, पार्श्वनाथ, मुनिसुव्रत स्वामी व शान्तिनाथ भगवान की प्रतिमाएं हैं।
तेरहवीं देहरी में पद्मप्रभ, भीड़भंजन पार्श्वनाथ व नेमिनाथ भगवान की प्रतिमाएँ हैं। चौदहवीं देहरी के बीच के गोखले में मुनिसुव्रतस्वामी की प्रतिमा वि. सं. 1486 से प्रतिष्ठित है। चौदहवीं देहरी में आदीश्वर पार्श्वनाथ (श्यामवर्ण) एवं नाग रहित पार्श्वनाथ की प्रतिमाएँ प्रतिष्ठित हैं। पन्द्रहवीं देहरी में अवन्तिपार्श्वनाथ, ____ 1. सोम सौमान्य सर्ग 10 श्लोक 67-71
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