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जगजयवंत जीवावला
लगी इस पहली देवकुलिका में इस तीर्थ के अधिपति भगवान जीरावला पार्श्वनाथ की प्राचीन दो मूर्तियाँ हैं। एक तो बहुत प्राचीन है एवं दूसरी उसकी अनुकृति बाद की बनाई हुई है। इनके नीचे पद्मावती देवी की खड़ी प्रतिमा है। लोग यहीं पर अपनी मनौतियाँ पूरी करते हैं। पास की दूसरी देहरी में भगवान नेमिनाथ की मूर्ति प्रतिष्ठित है जो लगभग 200 वर्ष तक इस तीर्थ के मूलनायक रहे। यह कहा जाता है कि यह मूर्ति जीरावला एवं वरमाण के बीच ऊंडावाला के पास के नांदला नाम के बड़े पत्थर के पास वाले खेत से प्रकट हुई थी।
भमती की देवकुलिकाओं की एक विशेषता यह है कि इन देहरियों में भारत भर के प्रसिद्ध पार्श्वनाथ बिम्बों की स्थापना है।
इस प्रथम देहरी में जीरावला पार्श्वनाथ व मुनिसुव्रत स्वामी प्रतिष्ठित हैं। मुनिसुव्रत स्वामी की मूर्ति काले पत्थर की है एवं बड़ी सुन्दर है।
इस दूसरी देवकुलिका में दादा पार्श्वनाथ पंचासरा पार्श्वनाथ तथा कल्याण पार्श्वनाथ प्रतिष्ठित हैं, इस देहरी पर सं. 1481 का एक लेख है जिसमें आचार्य रत्नसिंहसूरि का उल्लेख है, 1481 के लेख बहुत सी देहरियों पर हैं उनमें अलगअलग आचार्यों के नाम आए हैं। शायद तब भी जीरावला की मान्यता बहुत रही होगी अतः दूर-दूर के आचार्य इसके जीर्णोद्धार के लिए धन भिजवाते थे। इस देहरी के जीर्णोद्धार में बीस नगर के प्राग्वाट खेतसी ने रुपये लगाये थे।
तीसरी देहरी पर भी 1481 का लेख है। इसमें अजाहरा पार्श्वनाथ व शान्तिनाथ भगवान प्रतिष्ठित हैं।
इस चौथी देहरी में माणिक्य पार्श्वनाथ नवखण्डा पार्श्वनाथ व सूरजमंडन पार्श्वनाथ प्रतिष्ठित हैं। इस पर भी सं. 1421 का ही लेख है।
इस पांचवी देहरी में चिन्तामणी पार्श्वनाथ, वरकाणा पार्श्वनाथ व लोद्रवा पार्श्वनाथ प्रतिष्ठित हैं।
छठी देहरी में जगवल्लभ पार्श्वनाथ ,भाभा पार्श्वनाथ एवं मोरैया (मोरिया) पार्श्वनाथ प्रतिष्ठित हैं। इस देहरी पर सं. 1487 पोष सुदी 2 रविवार का लेख है। आचार्य मेरूतुङ्गसूरि के पट्टधर गच्छनायक श्री जयकीर्तिसूरि के उपदेश से इस देवकुलिका का निर्माण या जीर्णोद्धार हुआ था। इन मेरूतुङ्गसूरि ने प्रबन्धचिन्तामणी नाम के ग्रंथ की रचना की थी एवं इन्होंने श्री जीरापल्लि पार्श्वनाथ स्तोत्र की रचना की थी
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