SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 314
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्राकृतस्तोत्रप्रकाशः २९१ - ॥ श्री सम्यग्ज्ञानपदस्तोत्रम् ॥ ॥ आर्यावृत्तम् ॥ वंदिय सम्भत्तपयं-उवयारगणेमिमूरिगुरुमंतं ॥ सम्मण्णाणत्थवणं-विहेमि विविहाणुओगमयं ॥ १॥ मणवयणकायतावं-जं सामइ दिण्णभावसिरिपयरं ॥ सण्णाणसंजमाणं-दभरियमहिलत्थतत्तदयं ॥ २ ॥ परमप्पहावकलियं-अवीयतिहुयणविलद्धविजयधयं ॥ सव्वव्यावगवज्ज-दरिसणसत्थेसु पसमदयं ॥३॥ उइयं नाय दाउं-सेसाहिलदसणाण जं सक्कं ॥ तमणेगंतरिसणं-जयइ सियावायणिपक्खं ॥ ४ ॥ तम्मि परमपयलाहो-वुत्तो जगएहिं नाणकिरियाहि ॥ संखित्तवयणमेयं-वित्थडवाओ य तत्तत्थे ॥५॥ वाई पुच्छइ कम्हा-नाणस्साइग्गहणमत्व किरियाए ॥ इह पण्हुत्तरमेयं-विष्णेयं पुज्जगुरुभणियं ॥ ६ ॥ नाणेग सया होज्जा-किरियाराहणमदोससाहल्लं ॥ एतो नागस्साइ-ग्गहणं विहियं पवयणम्मि ॥ ७ ॥ जह तिहलाइ करेंते-जलं विसुद्धं तहा वरतवेणं ॥ संपक्खालिज्जते-परिजिण्णोवचियकम्ममला ॥ ८॥ अहिणवकम्मनिरोहो-किज्जइ सुहसंजमेण दुण्डंपि ॥ साहणविहिप्पबोहो-होज्जा नाणेण णण्णेणं ॥९॥
SR No.006174
Book TitleStotra Chintamanistatha Prakrit Stotra Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaypadmasuri
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year
Total Pages344
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy