SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 309
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ -२८६ श्री विजयफ्मसूरिविरचितः छण्हमुदओ पएसा-रसोदओ सम्ममोहणीअस्स ॥ खाओवसमियभावं-असंखवाराउ पाविज्जा ॥८६॥ अंतमुहुत्तं लहुयं-साहियछावहिसायरे गुरुयं ॥ गुणठाणगा चउत्था-सत्तमगुणठाणगावहियं ॥८७॥ लहए खाइयसद्ध-खाओवसमी पवुडभावेहि ॥ पडिओ उण मिच्छत्तं-एयं ता बुट्टिपडिवायं ॥ ८८ ॥ उवसमिए उक्किट्ठा-आवलिया छक्कमेससमयम्मि ॥ खणमाणे य जहण्णा-पढमकसाओदया पडणं ।। ८९ ॥ अप्पत्ते मिच्छत्ते-सम्मत्तासायणं जहिं होज्जा ॥ सासयणसम्मत्तं-जहुत्तकालं च विष्णेयं ॥९० ॥ पडिवाइदंसणं तं-भवचक्के पंचवारसंपत्ती ॥ दोवारा इक्कभवे-बिइज्जगुणठाणगं तम्मि ॥९१॥ खाओवसमियरूवं-णायच्वं वेयगंति पावयणे ॥ एवं समयहिइयं-इगसो लाहो हवइ तम्स ।। ९२॥ खाओवसमियजीवो-लध्धु खाइयविसिट्ठसम्मत्तं ॥ नासिज्ज पगइछक्कं-सत्तण्हं तयणु पज्जते ॥९३॥ सम्मत्तमोहखवणं-करेइ तत्थंतिमे खणे सद्धा॥ जा तं वेयगमिटुं-गुणठाणचउकसम्भावं ॥ ९४ ॥ वेयगसम्मट्ठिी-समयाणंतरखणे हवइ नियमा ॥ खाइयसम्मदिही-ता बुझिगयं तयं भणियं ॥ ९५ ॥
SR No.006174
Book TitleStotra Chintamanistatha Prakrit Stotra Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaypadmasuri
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year
Total Pages344
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy