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प्राकृतस्तोत्रप्रकाशः
सत्तण्हं पयडीणं-उवसमभावा समुब्भवइ सद्धा ॥ उवसमियं सम्मत्तं - उदयनिरोहो उवसमत्ति ॥ ७६ ॥
२८५.
एम्म परसोदय - रसोदया सव्वहा ण एतो कहियं सुते - तत्तत्थे भावसम्मत्तं अंतमुहुत्तट्ठियं - पाविज्जइ सयलभवयचकम्मि || पणवारा एगभवे - दोवारा भव्वजीएहिं ॥ ७८ ॥ गुणठाणगा चउत्था - अट्टगुणट्ठाणगेसु तं होज्जा ॥ आगयपटणसहावा - वृत्तं पडिवाइसम्मत्तं ॥ ७९ ॥ तं खाइयसम्मत्तं - जं होज्जा पयडिसत्तगविणासा ॥ अइनिम्मलस्सहावं- तल्लाहो इकसो भणिओ ॥ ८० ॥ साइअनंत द्विइयं - अंतमुहुत्तं लहूउ उक्किट्ठा || साहियतेत्तीसद्धी - उद्दिस्स भवत्यभावदसं ॥ ८१ ॥ गुणठाणगा चउत्था-इक्कारगुणनिकेयणेसु तयं ॥ अप्पडिवाइसहावं-सिद्धेषु वि तं मुणेयव्वं ॥ ८२ ॥ पहुसामइयंगीणं - सम्मत्तमिणं मणुस्सभावेणं ॥ तस्सारंभी होज्जा - पंचभवा तस्स उकिट्ठा ॥ ८३ ॥ इक्काइ भवण्णाणं- मुण्णेयं कण्हपंचभवगणणा ॥ वसुदेवाइयहिंडी- पमुहग्गंथे निाि ॥ ८४ ॥ सत्तण्डं पयडीणं - उइयखयाऽणुइयपसमभावाओ | जा सद्धा सम्मत्तं - खओवसमियं तयं तहियं ॥ ८५ ॥
सत्ताहं ॥
॥ ७७ ॥