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________________ २८४ श्री विजयपद्मसूरिविरचितः पडिवाइयधम्मदुगे-वित्तीए धम्मसंगहग्गंथे ॥ एवं पटुं भणियं-वुच्छं पण्णत्ततप्पज्जं ॥६६॥ माणसवियाररूवा-सद्धा तम्हेगयाइजीवेसुं ॥ अपज्जत्तेसु तहा-सिद्धाइसु लक्खणं भणियं ॥ ६७ ॥ सम्मत्तस्स ण घडए-मणवइरेगा पहूहि पण्णत्तं ॥ अवि तेसिं सम्मत्तं-इय णिज्जुत्तीइ गुणगुरुणा ॥६८॥ " सम्मत्तं सुहभावे "-सव्वगयं लक्रवणं हु वुत्तमिणं ॥ बोहियनवतत्ताणं-सम्मत्तं होज्ज जीवाणं ॥ ६९ ॥ एवं सइभावेणं-अयाणमाणाण सदहंताणं ॥ सम्मत्तंति कहमिणं ?-एयं पण्हस्स पडिवयणं ॥ ७०॥ नो नाणस्साभावं-अयाणमाणत्ति वयणमिह कहए ॥ अप्पण्णाणत्थमिणं-ववहारोऽविऽत्तसंवयए ॥७१॥ अप्पधणो बहुधणिया-भासिज्जइ गिद्धणत्ति णाविइयं ॥ वत्थविहीणो लोए-बुच्चइ परिजिण्णवत्थत्ता ॥७२॥ एवं जइणो होजा-तया न नाणं असंतसम्मत्ते ।। सइ एवं चारित्तं-न होइ मुत्ती कहं तइया ॥ ७३॥ जिणपण्णत्तं सच्चं-तिसद्धिअंगीण होज सम्मत्तं ॥ मासतुसाइ जियाणं-मुत्ती घडए भणियभावा ॥७४॥ वित्थारा करणतिगं-समदंसणपईवगंथम्मि ॥ कहियंति भणिज्जइ णो-इह संखित्तप्पयासाओ ॥ ७५ ॥
SR No.006174
Book TitleStotra Chintamanistatha Prakrit Stotra Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaypadmasuri
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year
Total Pages344
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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