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प्राकृतस्तोत्रप्रकाशः
धम्मो करुणा संजम - तवरूवो भसामा तिष्णि ॥ इयं भावणण्णय गया -सद्धा जिणएहि पण्णत्ता ॥ ५६ ॥ एआ भिन्नसरूवं - सम्मत्तं जीवपरिणइविसेसं ॥ उवसमखयाइएहिं - होज्जा सत्तण्ह पयडीणं ॥ ५७ ॥ संवेगाइयलक्खं - कहए आवस्सईय निज्जुती | गुरुभद्दबाहुरइया-तत्तत्थर हस्समत्त मिणं ॥ ५८ ॥ जत्थ जहिं मुहसद्धा - सम्मत्तं तत्थ तत्थ नियमाओ ॥ साहियमणपज्जत्ती - पाणदसगधारगा तत्तो ॥ ५९॥ तित्थयराइयगुणिणो - गन्भत्था पुव्वगइयसम्मत्ता ॥ लोगुत्तरसद्दहणा - होज्जइ नाओ व भासे ॥ ६० ॥ जत्थय धूमो नियमा- तत्थऽगणी जह महाणसे वत्ती ॥ धूम्मस्स होइ भयणा - जत्थऽणलो तत्थ धूमति ॥ ६१ ॥ एहसाह - दिहंतो लोहगोलगो तत्तो ॥ एवं सम्मदंसण-सद्धोवणयं वियाणिज्जा ॥ ६२ ॥ सम्मत्तं जत्थ तहिं -सद्धा भयणा जहा जिणिंदाणं || गन्भत्थाणं मणप-ज्जत्तीए पुव्वसमयमि ॥ ६३ ॥ तयणंतरम्मि समए - दुगसम्भावो तओ य परमत्था ॥ भिनं सम्मत्तमिणं - सद्धा भिनत्ति पण्णत्तं ॥ ६४ ॥ गणिय तहावुवयारा -सद्धा कज्जस्स दंसणविहे | एगत्तम भयनया - भणिज्जए दोसु णो भेओ ।। ६५ ॥