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________________ श्री विजयपद्मसूरिविरचितः दंसणमिह सम्मत्तं तं पुण तत्तत्थ सहहणरूवं ॥ संबोहप्पयरणए - बुत्तं हरिभद्दसूरीहिं ॥ ४६ ॥ सुद्धरुई सम्मत्तं - जिणुत्ततत्तेमु जोगसत्यंति ॥ तत्थत्थसद्दहाणं- सम्मदंसणमिणं सुत्ते ॥ ४७ ॥ सव्वेसिं णिस्संदं-तत्तत्थिय सदहाणसम्मत्तं ॥ कारणकज्जसहावो-मणिओ सम्मत्तसङ्काणं ॥ ४८ ॥ ॥४८॥ सम्मत्तस्स सरूवं - किं किं सद्धाइ दुहमत्रि भेया ॥ एवं पुच्छइ वाई - उत्तरमेयं गुरू दे ॥ ४९ ॥ अत्थाविसेसभावा-सद्धा वरभावणाउ माणसिया ॥ सणीण होज्जेसा - नण्णेसिं चित्तवइरेगा ॥५०॥ रागा वा दोसा वा - अण्णाणा वा वितहभासणं होज्जा ॥ नियपरदोसच्छायण - हेऊउ वएज्ज रागिनरा ॥ ५१ ॥ देसा कहिज्ज वयणं असंतदोसोवदंसणहस्स ॥ सत्तणं विवरीयं - एवमबोहा असच्चत्थं ॥ ५२ ॥ जीवाजीबाईणं - तत्तं जाणेइ जो न से कइया || भासिज्जातश्च्चत्थं - जीवमजीवं वज्जति ॥ ५३ ॥ एयाणि कारणाई - नासेइ जिणत्ति वयइ सच्चत्थे ॥ धम्मो जिणपण्णत्तो-कल्लाणयरो परत्येह ॥ ५४ ॥ से सासयसुक्खदओ - न धणाइ तहा विओगभावत्ताइ ॥ अरिहंतो मे देवो - गुरुणो चरणाइउज्जुत्ता ॥ ५५ ॥ २८२
SR No.006174
Book TitleStotra Chintamanistatha Prakrit Stotra Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaypadmasuri
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year
Total Pages344
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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