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________________ प्राकृतस्तोत्रप्रकाशः २८१ महुराए नयरीए-गेहे कंसस्स कण्हजम्मो य ॥ बुडी गोउलगामे-बारवइए कयं रज्जं ॥ ३६॥ कोसंबीनयरीए-अडवीए वाणवेयणामरणं ॥ जायं तह गुरुबंधू-रामो कण्हस्स रूवमिणं ॥ ३७ ॥ धम्मायरिओ पुव्वे-भवम्मि पुज्जो दुरंतसेणगुरू ।। मरिऊण गओ निरए-तइए तग्गइयबद्धाऊ ॥ ३८ ॥ इयणेगक रणेहिं-पुज्जो मा साइणेह मुतत्तत्थे ॥ पढमे मुत्ते पढम-तं गहियं पवर सम्मत्तं ॥ ३९ ॥ आवस्सए विसेसे-वुत्ता मुत्ती सुनाणकिरियाहि ॥ वाई पुच्छइ कम्हा-इह दीसइ दंसणागहणं ॥४०॥ अण्णयवइरेगेण-नाणं सहयारि दंसणेण सया ॥ जत्थ ण्णाणं तहियं-होज्जा नियमेण सम्मत्तं ॥४१॥ सम्मत्तं जत्थ तहि-नाणं खलु दुण्हमेवमिइ वत्ती ॥ अण्णाणं तं नाणं-जं सम्मत्तेण परिहोणं ॥४२॥ किं कारणमिइ कहमो-मिच्छत्तण्णियमिणं कहं नाणं ॥ विसमीसियं जहऽण्णं-पसमरईए तहा वुत्तं ॥४३॥ अज्जत्तयमण्णाणं-पि होज्ज मिच्छत्तभावसंमिस्सं ॥ ता सम्मट्ठिीणं-नाणंति पसिद्धिमावणं ॥४४॥ अंतब्भावं किच्चा-सण्णाणे दंसणस्स पण्णत्तो ॥ आवस्सए विसेसे-मोक्खो वरनाणकिरियाहिं ॥४५॥
SR No.006174
Book TitleStotra Chintamanistatha Prakrit Stotra Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaypadmasuri
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year
Total Pages344
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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