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श्री विजयपद्मसूरिविरचितः
देसविरइहरसड्डा-बिइया सिवहेउपयरपाहणं ॥ सम्मत्तमिणं सिद्धं - भरहाइसरूववीयमिणं ॥ २६ ॥ भरहस्स जम्मभूमी - पुरी विणीया पिया जुगाईसो ॥ जणणी सुमंगलक्खा - चोरासीलक्खपुव्वाऊ || २७ ॥ पण सयधणुमागं- कुमरत्ते सगसयरिलक्खपुव्वाई ॥ सहसवरिसमंडलिया - इत्थीरयणं सुमद्दनि ॥ २८ ॥ सद्विवरिससहसाई - गयाइ छक्खंडसाहणे तस्स ॥ सहसवरिसनू गाई-छलक्खपुब्वाइ चक्कित्ते ॥ २९ ॥ वज्जायंसगभुवणे - चक्की से पढमभावणाभावा ॥ संजाओ सव्वण्णु - दीहाऊ पत्तमुणिवेसो ॥ ३० ॥ इगलक्ख पुव्यचरणं - पालिता देसणाइ तारिता । बहुभवणरे पत्तो - मुत्तिपयं निरवसाणसुहं ॥ ३१ ॥ सिरिठ गज्झयणे - नवमे सेणियचरित्तसंखेवो ॥ उवसप्पासाए - अभव्वकविलाइदिता ॥ ३२ ॥ कण्हो सोलसवरिसे - कुमारभावे य मंडलियभावे ॥ छप्पण्णव रिसकालो - विसयरिनूणे सहसरिसे ॥ ३३ ॥ कण्हो करीअ रज्जं - पुव्वभवो तस्स सत्तमं सगं ॥ महुराए सो जाओ - जणओ वसुदेवभूमिव ॥ ३४ ॥ दहधणुमाणसरीरो - सहसवरिस पुण्णजीवणो णीलो | गोयमगुत्तीओ से - तह जगणी देवई तस्स ॥ ३५ ॥
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