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प्राकृतस्तोत्रप्रकाशः
इह दंसणमोहतिमं - तहेवणंताणुबंधियकसाया || सत्तण्डं पयडीणं- उदया समति संसारे ॥ १६ ॥ नियवीरियपाबल्लं - तह भव्वत परिवागो || सत्तक्खयाइएहिं, परेहि वि मणुष्णहेऊहिं ॥ १७ ॥ तिकरणविहाणजोगा - केइ लहंते पमोयसम्मत्तं ॥ भावरयणमिइ सुत्ते - वृत्तं गणहारिदेवेहिं ॥ १८ ॥ भावा जिणवइकहिया - सच्चा नियमा तहेव निस्संका ॥ इय सद्धा सम्मत्ता - विवाहपण्णत्तिवयणमिणं ॥ १९॥ पुग्गलपरियदृद्धं - जाक्क्किट्ठो भवो जहणूणो || संधारणिज्जमेयं - हियए कहियस्स तप्पज्जं ॥ २० ॥ सम्मदंसणवडिया - तर सहयारिप्पबोहचरणेहिं || पडिया वराइ तेसिं-नाणचरित्ताइ णो होज्जा ॥ २१ ॥ एएण कारणे - पार्वति ण निव्वुई वयणमेयं ॥ उइयं जिनिंदवृत्तं - कहियं सम्मत्तमाहष्पं ॥ २२ ॥ मुणिवेसाइचरितं - दव्वा तेहिं विणा भरहपमुहा || सन्भावसंजमड्डासन्भाव संजमडा - खिष्पं पावीअ परमपयं ॥ २३ ॥ न तहा दंसणहीणा - संगमकविलाइया विणयर यणो ॥ अंगारमदगो वि य- पालगजुबलंति दिहंता || २४ ॥ सेणियकण्हाईणं-सङ्कत्तं भण्णए सुसम्मत्ता ॥ सड्डाण दुणि भेया- अज्जा सम्मत्तगुणसड्ढा ॥ २५ ॥
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