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________________ श्री विजयपद्मसूरिविरचितः अभयाइदेवसूरी - दंसणमेत्ता विकुट्ठाही || जाओ बंधणणासो - झाणा तह देयसाहुस्स ॥ २ ॥ एयं विंवं रामो-महीअ णववासरसगमासे ।। इकारसलक्खदे - पच्छिमदिसिवालसुरवरुणो || ३ | उवस्सग्गवारणटुं - जावज्जीवप्पसीलपहुवयणा || कण्हद्धचकवट्टी - नियनयरीए समच्चीअ ॥ ४ ॥ दुसहस्समाणवारिसे - कंतिपुरीए धणेसधणवरणा || महिसा बहुमाणा - अम्हाणं कुणउ कलाणं ॥ ५ ॥ सणिज्झमहण झाणा - लहए गागज्जुणो कणयसिद्धिं ॥ पुरिसाइज्जो पासो - होउ हिययमंडणं मज्झ || ६ || सिरिपासनाहसरणं - मिलउ पइभवं महष्पहावभरं ॥ सिरिसंघो कुणड हियं - थंभणपा सप्पहावेगं ॥ ७ ॥ २७६ ॥ श्री सिद्धगिरि चैत्यवंदनम् ॥ || आर्यावृत्तम् ॥ स जयइ सिरिगिरिराओ-अणंतमहिमडूपुष्णमुत्तिदओ ॥ सोरट्ठदेसमउडो-जंदणं महाणंदो ॥ १ ॥ णाभेयपुत्त पुत्ता- मुणिदसकोडीहि निव्वुई पत्ता || दाविडसुवारिखिल्ला कत्तियसिय पुण्णिमादिवसे ॥२॥
SR No.006174
Book TitleStotra Chintamanistatha Prakrit Stotra Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaypadmasuri
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year
Total Pages344
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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