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प्राकृतस्तोत्रप्रकाशः .. . . .
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णवणवइपुत्ववारे-फग्गुणमुक्कटमीसमोसरिया ॥ इह सिद्धायलतित्थे-जुगाइणाभेयतित्थयरा ॥३॥ फग्गुणसियदसमीए-मुणिकोडीजुयलसंगया सिद्धिं॥ विज्झाहरणमिविणमी-पव्यपसिद्धी तओ भणिया ॥४॥ दिण्णाणतंगिसुहो-सिद्धगिरी तयहिओ जुगाईसो॥ वंछियदाणं यच्छउ-कुणउ सया संघकल्लाणं ॥ ५ ॥
॥श्री सम्यग्दर्शनस्तोत्रम् ॥
॥ आर्यावृत्तम् ॥ सिरिसच्चदेवसुमई, वंदित्तुं णेमिसरिगुरुचरणं ॥ सम्मइंसणथुत्तं, रएमि सिरिसिद्धचक्कगयं ॥ १ ॥ अवितहणिस्संदेहं, तं जं पडिवाइयं जिणिदेहिं ॥ सम्मईसणमेयं, मुहाय परिणामस्वमिणं ॥२॥ उवसमखओभएहिं, पढमकसायाइसत्तपगईणं ॥ संवेगाइयलिंगे, से परिणामो समुभवए ॥ ३ ॥ सद्धाहेऊ एसो, उवयारा कारणमि णो भेओ॥ जस्सि सद्धा नियमा, सम्मत्तं तम्मि विष्णेयं ॥ ४ ॥ सम्मत्तं जत्थ तहिं, भयणा माणसवियारसद्धाए ॥ अंतिमपज्जत्तिअप, जत्तरिहंताइदिटुंता ॥ ५ ॥