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प्राकृतस्तोत्रप्रकाशः
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॥ श्री शंखेश्वरपा र्श्वनाथ चैत्यवंदनम् ॥
॥ आर्यावृत्तम् ॥
अइपाईणं बिंबं - सिरिसंखेसरपुरत्थपासस्स ॥ अण्णाण तमदिणवई - मो वंदामो महुलासा ॥ १ ॥ समरंतु पासनाहं भव्वा ! तुब्भे अमित्तभत्तसमं ॥ दोहग्गरोगसोगा - जस्स पसाया पणस्सेंते ॥ २ ॥ धरणिंदो पहूभत्तो- पासपहुज्झाणतप्परनराणं ।। विरह बंछियari - रक्खइ उवसग्गसंसग्गा ॥ ३ ॥ दारजिणभणिया- तुह सिद्धी पासनाहतित्थम्मि ॥ इयं वयणा कारवियं- आसाढीसावरणं जं ॥ ४॥ अच्चीअ भव्वबिंबं तं धरणिदाइदेवपोम्मई ॥ कण्हाई सिद्धविही- इयच्चा होंतु भत्तिपरा ॥ ५ ॥ सरणं पासपहूणं - हरिसा पडिवज्जिऊण धण्णोऽहं ॥ सह विण्णवेम होज्जा - भवे भवे तुज्झ पयसेवा ॥ ६॥
॥ श्री स्तंभनपार्श्वनाथ चैत्यवंदनम् ॥
॥ आर्यावृत्तम् ॥
सजग थंभणपासो - जस्स इमेत्ता चिसिलिटीओ ॥ सिज्यंति मंगलाली - नियगुणरहरंगपिच्चरमा ॥ १ ॥