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________________ प्राकृतस्तोत्रप्रकाशः २४३ समभावमुक्खसमय-समयामयसंतिसुक्खमुहकमलं ॥ संखेसरलंकरणं-पास पहुं सरमि चित्तम्मि ॥ २४ ॥ सिरिणेमिसरिवयणा-साराभाउत्ति सेटिणा जस्स॥ परिकारिओ विहारो-तं से सापहुं वंदे ॥ २५ ॥ सिरिसेरीसातित्थे-पइटियं रायनयरपासम्मि । पासं धुणंतु भव्वा !-अण्णेसि कयं पयासेणं ॥२६॥ उवसग्गयरे कमढे-पूयाइविहाणलीनधरणिंदे ॥ समवित्तिं पहुपासं-वंदे बहुमाणभत्तीए ॥ २७ ॥ भव्वइसयसंपण्णा-पूया नासेइ जस्स पावमले ॥ तं थंभतित्थपासं-सययं हरिसा पणिवयामि ॥ २८ ॥ झाअंति थंभणेसं-जे थिरहियएण मूरुदयसमए । तेसिं विमला कमला-मंगलमाला परत्थ सुहं ॥ २९ ॥ पासस्स रूवममलं-सिरिलहुलंकाट्ठियस्स देवस्स ॥ संपेहाए णिच्च-धण्णा पूयाइ कुव्वंति ॥ ३० ॥ जायं जस्सच्चवणं-किण्हचउत्थीइ वज्जमहुमासे ॥ दसमीए किण्हाए-पोसे सुहजम्मकल्लाणं ॥ ३१ ॥ इक्कारसीइ पोसे-किण्हाए जस्स निम्मला दिक्खा ॥ चउनाणमोणकलियं-चंदे तं थंभतित्थपहुं॥ ३२॥ झाणंतरीयसमए-असियचउत्थीइ सिट्टमहुमासे ॥ संपत्तकेवलिडिं-थंभणतित्थप्पहुं वंदे ॥३३॥
SR No.006174
Book TitleStotra Chintamanistatha Prakrit Stotra Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaypadmasuri
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year
Total Pages344
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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