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श्री विजयपद्मसूरिविरचितः
संसारभमंताणं-कल्लाणं होउ सयलजीवाणं ॥ मित्तीदेसगपास-सययं हं पंजली वंदे ॥ ३४ ॥ आयारो पणभेओ-महन्वयाणुव्वयाइ एमेव ॥ इय तत्तगोवएसं-थंभणपासप्पहुं वंदे ॥ ३० ।। पंचप्पमायभेया-समिइव्वयभावणाउ एमेव ॥ इय तत्तगोवएसं-थंभणपासप्पहुं वंदे । ३६ ॥ पंचायरियाइसया-पणभेया समणथावराण च ॥ इय तत्तगोवएसं-थंभणपासप्पहुं वंदे ॥ ३७॥ पंचविहा किरियाओ-नाणाई पंच पंच कामगुणा ।। इय तत्तगोवएस-थंभणपासप्पहुं वंदे ॥ ३८ ॥ चेयणधम्मनियोगा-आयाजुत्तो गुणेहि एगविहो । इय सिहदेसणं तं-थंभणपासप्पहुं वंदे ॥ ३९ ॥ जीवा मुत्ता भविणो-दुविहा तसथावरेहि तह भविणो ॥ इयमिट्ठदेसणं तं-वंदे सिरिथंभणाहीसं ॥ ४० ॥ तिविहा वेयपएहिं-चउगइभेएण देहिणो चउहा ।। इय तत्तगोवएसं-थंभणपासप्पहुं वंदे ॥४१॥ पंचिंदियभेएहि-पंचविहा छव्विहा य काएहिं ॥ इय तत्तगोवएसं-थंभणपासप्पहुं वंदे ॥४२॥ एवं विविहविवरका-समए वुत्तंगिभेयगणनासु ॥इय०॥४॥