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श्री विजयपद्मसूरिविरचितः
सच्चपहावललियं सहियं सत्तियरमाविणोएणं ॥
तं सचदेवमयं सुमई तित्थेसरं थुणमि ॥ १६ ॥ तालज्झयगिरिपासं, सिट्ठजणेहिं थुयं नयं सययं ॥ सुमइनियाणं सरमो, पुरिसाइज्ज ं च वामेयं ॥ १७॥ पिहंति मोहनिवई - जा दहुं धम्मवीरसप्पुरिसा ॥ 'ता तालज्झयदेवे - वंदे भवसिंधुपोयनि ॥ १८ ॥ जीवंतसामिपडिमं - पुलअइ जो पेम्ममत्तिभावेगं ॥ पुलआइ तस्स मणं - नियमा दारिदविलओ य ॥ १९ ॥ जीवंतसामिवीरं - सिद्धत्थनरिंद वंसगयणरविं ॥ पूयइ जो वरविहिणा - से संपाउगइ मुत्तिपयं ॥ २० ॥
॥ द्रुतविलंबितवृत्तम् ॥
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महुमईनयरीमउडं पहुं । सयलवंछियदाणसुरदुमं ॥
पवरसास गनायगमिट्ठयं ।
पणिवयामि सया तिसलासुयं ॥ २१ ॥
॥ आर्यावृत्तम् ॥
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जो तिक्कालं - संखेसरपासनाहपयकमलं ॥ नो मुज्झइ कम्मनिवा - पुलो अए से नेयम्मि नियं ॥ २२ ॥ संखेसरनयरत्थं-कण्हाइयपूइयं च पाईणं ||
सिरिसं खेसरपासं-झाएमि सया हिययमज्झे ॥ २३॥