SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 231
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ૨૦૮ श्री विजयपद्मसूरिविरचितः तिकालं सुहविहिणा, कप्पलयब्भहियभन्चमाहप्पं ॥ वीरं णमंतु भविया !, पसमगुणालंकियं धीरं ॥१६६॥ निभवो सहलो जाओ, जाया मज्झज्ज पावणा रसणा॥ तित्थत्यवणविहाणा, संजाओ सत्तियाणंदो ॥१६७॥ माहप्पजुयस्सेवं, कयंबतित्थस्स सत्तिई पूयं ॥ जत्तामहुस्सवाई, करंति जे कारवेंति मुया ॥ १६८ ॥ अणुमोअंति नरा ते, रिद्धिपवुडिं परत्यकल्लाणं ॥ पाविति बद्धलक्खा, गुरुवयणं नण्णहा होज्जा ॥१६९॥ अत्तजणाण मुहाओ, तहेव गहिऊण संपयायलवं ॥ पाईणसत्थसारं, बिहकप्पो सिरिकयंबस्स ॥ १७० ॥ रइओ ताण पसाया, जेहि गुरूहि कयंवभत्तेहिं ॥ अस्स विहाणे दिण्णा, अणा मज्झं महाणंदा ॥१७१॥ इह मे जं विवरीयं, कहियं होजणुवओगभावेणं ॥ खामेमि सुद्धभावा, जत्तो मे तित्थभत्तीए ॥१७२॥ सिरिनेमिवीरपहुणो-मंगलधम्मा सया पसीयंतु ॥ पुजा सव्वेऽवि तहा-तित्थाहिट्ठायगा देवा ॥१७३॥ बिहकप्पाइविहाणे, साहिज विहाणभावकरुणा ॥ आयरिमोदयसूरी-विज्झागुरुणो जयतु सया ॥१७४॥ समिइनिहाणनिहिंदु-प्पमिए वरिसे सिरिंदभूइस्स ॥ गणिणो केवलदियहे, जइणउरीरायनयरम्मि ॥१७५॥
SR No.006174
Book TitleStotra Chintamanistatha Prakrit Stotra Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaypadmasuri
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year
Total Pages344
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy