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प्राकृतस्तोत्रप्रकाशः
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माहवसियट्टमीए, पहुप्पवेसाइ महसिणत्तं च ॥ साहम्मीवच्छल्लं-परिविहियं मूलचंदेणं ॥ १५६ ॥ सिरिवीरप्पासाए, महपूयाई य सुकनवमीए॥ साहम्मीवच्छल्लं-नगीनदासेन परिविहियं ॥ १५७॥ पहुबिंबासणठवण-प्पमुहविहाणाइ सत्तमीदियहे ॥ साहम्मीवच्छल्लं-विहियं कप्पूरचंदेणं ॥ १५८ ॥ इक्कारसीमुहदिणे-वुडसिणत्तं च बारसीदियहे ॥ रहजत्ता विट्ठीओ-पयट्टिया तेरसी दिवसे ॥१५९ ॥ दारुग्घाडणपमुहं-किच्चं किच्चा महुस्सवसमत्ती ॥ बुडिभया संखेवा-भणिया बिइयंजणसलाया ॥१६॥ वित्थारेण सरूवं, विहाणसहियं तयक्खगंथम्मि ॥ वुच्छं जं णिस्संदं, मुलहं होज्जंजणसलाए ॥१६१॥ वंछियदाणसमत्थं, परमत्थनियाणकुसलसाहणयं ॥ विजयइ कयंबतित्थं, परमब्भुयमहिमपरिकलियं ॥१६२॥ कम्माण बंधमोक्खा, होति सया भावणाणुसारेणं ॥ कम्मुम्मूलणदक्खो, सुहभावो तित्थभूमीए ॥ १६३॥ संतोसधणा भव्वा, पवयणविण्णायतित्थणिस्संदा ॥ सिद्धिं पावेंति सया-कयंबवीरप्पसायाओ ॥ १६४ ॥ दुरियतिमिररवितुल्लं, भावोयहिरयणिनाहमुहकमलं ॥ वजकयंबविहारे, वंदे सिरिसासणाहीसं ॥१६५॥