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श्री विजयपद्मसूरिविरचितः
इक्कारसीवरदिणा - चित्तासियपक्खया समारंभो ॥ पवरुस्सवस्स जाओ - सत्तरस दिणावही रम्मो ॥ १४६ ॥ कुंभट्टवणार कयं - पढमदिणे सूरिमंतवरविहिणा || साहम्मीवच्छलं- विहियं माणेकचंदेणं ॥ १४७ ॥ नंदाच्चाई, विइयदिणे नवगहाइपरिपूया ॥ दिवसे तहा उत्थे, नवपय पूयावहाणाई ॥ १४८ ॥ उत्तम पंचमदियहे, रहजताई विसेसवित्थारा ॥ वीसठाण मंडल, पूयाइ दिने तहा छट्ठे ॥ १४९ ॥ बिहनंदा बच्चा - सत्तमदिय सुहाइकलाणं || साहम्मी वच्छलं- विहियं माणेकलालेणं ।। १५० ॥ जम्मसिणत्ताइविही, महुस्सवेणं कट्टमे दिय || साहम्मीवच्छलं- पोपटलालेण परिविहियं ॥ १५१ ॥ वरदिक्खाकल्लाणं, नवमे नामाइठावणं विहिणा ॥ कल्लाणगं चउत्थं, दसमे जायं पविथारा ॥ १५२ ॥ साहम्मी वच्छलं -रायणयरवासि चंदुला लेणं || एयम्मि दिने परायं - पहावणा सासणस्स कया ॥१५३॥ तयणंतरम्मि दियहे - माहवसियसत्तमी हरिसाओ || अंजण विहिपमुहाई - भद्दयकिच्चाइ विहियाई || १५४ ॥ साहम्मीवच्छलं - भावणयरवासिणा घणणं ॥ वित्थारेणं विहियं - सावयमाणेकचंदेणं ।। १५५ ॥
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