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प्राकृतस्तोत्रप्रकाशः
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सूरीहिं पुव्वेहिं, जह कहिया तह सुहंजण सलाया॥ सिरिणेमिसरिगुरुणा, विहिया विहिणा कयंबम्मि ११६॥ सुहसुकतेरसीए, माहे जाओ महुस्सवारंभो ॥ बावीस वासरंते, फग्गुणसियपंचमीनिहो ॥११७॥ मंडवठवणामंगल, दीवसमोसरणपमुहसंठवणा॥ कुंभट्ठावणकिरिया, जववारारोवणाइ तहा ॥११८॥ नंदावट्टसमच्चा, जिणपासायाहिसेयपमुहाई ॥ किच्चाई दिसिवालय-मंगलहिहायगगहच्चा ॥ ११९ ॥ विज्झादेवीपूया, संतिकलसपमुहसंविहाणाई ॥ सासणदेवि दव्या-हणबलिमंतोवविण्णासो ॥१२०॥ सिरिसिद्धचक्कपूया-पमुहविहाणाइ तित्थहिययाइं ॥ कल्लाणगाइहेउय-रहजत्ता उचियसामग्गी ॥१२१॥ वीसइठायमंडल-धजदंडकलसहिसेयपूयाइ ॥ जाया महुस्सवेणं-सुरीपइठा पसंति दया ॥१२२॥ बिहनंदावमुच्चा, पढमदुकल्लाणगुस्सवारंभो ॥ तह वरदिसिकुमरीणं, महुस्सवो रंगओ जाओ ॥१२३॥ जम्माहिसेयकिरिया, इंदाइमहुस्सवाइया रम्मा ॥ अडदसहिसेयणाम-ट्ठवणा वरलेहसालाई ॥ १२४ ॥ अहिसेयपइटाइय-महुस्सवो गणहराइयगुरूणं ॥ बिंबसिणत्तविहाणं-कुंभट्ठवणाइ मुकयंबे ॥ १२५ ॥