________________
.२०४
श्री विजयपद्मसूरिविरचितः वरघोडो दिक्खाए, गहदिसिवालच्चणाइ मुकयंबे ॥ संतिसिणत्ताइजुया, देउलियहिसेयकिरियाओ ॥१२६॥ दिक्खासेसविहाणं, केवलकल्लाणगुस्सवाइविही ॥ सुहलग्गंजणकिरिया, मूरिकया महभिसेयविही ॥१२७॥ वरकेवलकल्लाणे, सेसविहाणाइ संघवच्छल्लं ॥ पुज्जजिणासणठवणं, दंडाइयरोवणं विहिणा ॥ १२८ ॥ फग्गुणसियतइयाए, रायणयरवासिकरमचंदस्स ॥ पुत्तीए पुंजीए, भइणीए तेसलेयस्स ॥ १२९ ॥ पासाओ निम्मविओ, मज्ज्ञगओ मूलनायगरिहस्स ॥ सिरिवीरमहाविंबं, ठवणा तत्थेव तीइ कया ॥ १३० ॥ साहम्मीवच्छल्लं, संतिसिणत्तं तहा सिरिकयंबे ॥ रहजत्तावरघोडो, विट्ठी किरिया चउत्थीए ॥ १३१ ॥ दारुग्घाडणमेवं, वुड्ढसिणत्तुस्सवो समत्तीए ॥ पहुदसणमिइ कहिया, संखेवा सयलदिणकिरिया॥१३२॥ सिरिनेमिमूरिगुरूणो, विजओदयमूरिणंदणायरिया ॥ सिद्धतुत्तविहाणं, जणकिरियाकारगा तिणि ॥१३३।। तत्तविवेचयसंठा-सब्भेहिं सासणिक्करसिएहिं ।। गुरुलहुदेउलियाओ, कारित्ता जिणयपडिमाओ ॥१३४॥ संठविया भव्वेहि, इयावरेहि नयरसेद्विपमुहेहि ॥ हिडेहि देउलिया-निम्मावणठावणाईसुं ॥ १३५ ॥