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श्री विजयपत्रसूरिविरचितः
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के इत्य मच्छभक्खा -आहेडपरायणा य के इत्य ॥ कुणिमाहारा केइ-के इत्य सुरावसणभट्टा ॥ ४६ ॥ पडिबोहिय ते सव्वे-संतिविसिट्ठाइ महुरवाणीए. ॥ किच्चा य सुहायारे-कमागया सिरिकयंबगिरिं॥४७॥ जे कामलीयवंसा-सोचा गुरुदेसणं य पडिबुद्धा ॥ अह अन्नया य तेहि-मूरी विणएण विष्णत्ता ॥४८॥ गिरिरायग्गगयाओ-वावीपासहिया अहन्थाओं ॥ मामयलस्स रसाओ-दिच्छेमो मो कियंतीओ ॥ ४९ ॥ मुल्लं लाउं णेहा-अम्हाण किवासया कुणंतु किवं ॥ सोच्चा वयणं तेसिं-गुरुणावि पडुत्तरं दिणं ॥५०॥ उवहारसरुवेणं-अहिलासा वट्टए गहेउं णो॥ समये नवरं भाविणि-जिणाययणधम्मसालाओ ॥५१॥ होहिंति एत्थ तम्हा-भारहवासीयजइण संघेणं ॥ ठवियाऽऽणंदेण जुया-जा सिरिकल्लाणणामेणं ॥५२॥ संठा पुराणकाला-आसी अहुणावि रायनयरम्मि ॥ वट्टइ तीए ताओ-विकिणेउं होह उवउत्ता ॥५३ ॥ अंते तह संपण्णं-रज्जविहाणेण कारिऊणं च ॥ संदढनूयणपट्टे-साहारणदविणजाएणं ॥ ५४॥ तीए ताओ गहिया, सहला जायावि देसणा गुरुणो । धम्मट्ठाणुद्देसा, संघहिया भाविकल्लाणा ॥ ५५॥