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________________ ''प्राकृतस्तोत्रप्रकाशः . १९५ समये भाविणि खाइं, पाविस्सइ भव्वभइतित्थमिणं । अज्जवि दीसइ एवं, गणि वयणं नण्णहा होइ ॥ ३६॥ इय वण्णियमाहप्पं-सोच्चा भरहाहिवेण भरहेणं ॥ एयस्सुप्पिं विहिणा-णायागयदविणजाएणं ॥३७॥ धम्मुज्जाणे रम्मे-विसिट्ठपायवलयाइसंदित्ते ॥ अप्पणरूवनिरिक्खा-यरिसे जुग्गे य झाणस्स ॥ ३८ ॥ वडइमाइस्स तया-भाविजिणेसस्स वद्धमाणस्स ॥ पासाओ कारविओ-इंदाणंदो दरिसणिज्जो ॥ ३९ ॥ एयस्स मूलठाणं-वागरियं वित्थरेण गणवइणा ।। सत्तुंजयमाहप्पं-पुचि सिरिउसहसेणेणं ॥४०॥ संखिप्प तओ भणियं-सिरिगोयमसोहमेहि भव्वाणं ॥ णचा जीवियमप्पं-थूलमईणं विबोहडं ॥४१॥ दव्वाइदक्खमइणा-धणेसरायरियपुंगवेणेयं ॥ . सत्तुंजयमाहप्पं-संखित्तं पुव्ववयणेहिं ॥ ४२ ॥ एवं णचा हिट्ठा-माहप्पं विविहसमयसंकलियं ।। रसकायनिहाणिंदु-प्पमिए सुहविक्कमे वरिसे ॥४३॥ तवगणगयणदिणिंदा-जगगुरुणो तित्थररकणुज्जुत्ता ॥ आयरियणेमिसूरी-सीसपसीसेहि परिवरिया ॥४४॥ वालागाउडदेसे-गामे सायरतडत्यकंठाले ॥ . विहरंता संपत्ता-किवाहिया भव्वबोहढें ॥४५॥
SR No.006174
Book TitleStotra Chintamanistatha Prakrit Stotra Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaypadmasuri
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year
Total Pages344
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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