________________
प्राकृतस्तोत्रप्रकाशः
-
विण्णायजोगदिट्ठी, पओगमइसंपयाइपवरगुणे॥ तइयंगुत्ताइसए, अहिलायरिए थुणामि सया ॥४३॥ तइयदिणे थिरहियया, आयरियपयप्पहाणपणिहाणं ॥ छत्तीसगुणपमाणा, काउस्सग्गाइ कायव्वं ॥ ४४ ॥ गुरुयरसायण कुच्छं, मंगलऽडज्झप्पयाहिणावत्तं ॥ विणइ विसावहभावं, कंचणमिणमट्टगुणकलियं ॥४५॥ आयरिया धम्मगुरू, भावामयगणवहारगुवएसा ॥ सिरिसंघमागणिज्जा, सासणविग्धावणोययरा ॥४६॥ उवसग्गाणलजोगे, अडज्झभावा सुयामियस्साया ॥ णियपरहियाणुकूला, तरुदिटुंतेण णम्मयरा ॥४७॥ वरदेसणोसहीए, मोहुग्गविसावहारनिउणयरा ॥ कंचणगुणजोगेणं, पीया सूरी मुणेयव्वा ॥ ४८ ॥ णिक्खेवचउक्केहि, तइयपयवियारणा पकरणिज्जा ॥ आयरियाखा जेसिं, णामायरिया य ते भणिया॥४९॥ आयरियागं पडिमा, ठवणायरिया जिणागमे भणिया॥ समावेयरभेया, ठवणा सिरिगोयमाईणं ॥ ५० ॥ अणुहवणीयं जेहिं, आयरियत्तं च जेहिमणुहयं ॥ दबायरिया समए, ते वुत्ता भुवणभागृहि ॥५१॥ बारससयखण्णवइ, पमाणगुणभूसिया य गीयत्था ॥ आराहियसुयजोगा, संसाहियसूरिमंतविही ॥ ५२ ॥